ढाई आखर प्रेम का | Dhai Aakhar Prem Ke
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
525 KB
कुल पष्ठ :
85
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ढाई आखर प्रेम का १ प्रेम मुक्ति है प्यारी शोभना प्रेम। मेरा दूसरा पत्र तू मेरी कितनी अपनी है-इसे कहने इसलिए तू पूछे ही न तो अच्छा है। और पागल! मुझे देने के लिए तू ही कया जो तूने नहीं दे दिया है? प्रेम पूर्ण से कम कुछ भी नहीं लेना है। इसलिए ही तो वह मुक्ति है। क्योंकि वह पीछे शून्य कर जाता है। या कि पूर्ण। वैसे-शून्य या पूर्ण एक ही सत्य को कहने के लिए दो शब्द हैं। शब्दकोश में वे विरोधी हैं लेकिन सत्य में पर्यायवाची। मैं तेरे द्वारा पर किसी भी दिन उपस्थित हो जाऊंगा। लेकिन वह तेरे द्वारा जैसा मेरे मन में नहीं आता है। लगता है मेरा घर-मेरा द्वार! गड़बड़ हो गयी है! मेरी शोभना के कारण ही सब गड़बड़ हो गयी है! रजनीण के प्रणाम १८-७-१९६८ (प्रति सुश्री शोभना अव मा योग शोभना बंबई) को कोई भी मार्ग नहीं है। भी न खोज पाएगी-क्योंकि तेरे
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