एक एक कदम | Ek Ek Kadam

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आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक एक कदम कोई दो सौँ वर्ष पहले जापान मैं दो राज्यों में युद्ध छिड़ गया था। छोटा जो राज्य था भयभीत था हार जाना उसका निचित था। उसके पास सैलिकों की संख्या कम थी। थोड़ी कम नहीं थी बहुत कम थी। दुश्मन के पास दस सैनिक थे तो उसके पास एक सैनिक था। उस राज्य के सैनापतियों ने युद्ध पर जाने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि यह तो सीधी मूढता होगी हम अपने आदमियो को व्यर्थ ही कटवाने ले जाएँ। हार तो निचित है। और जब सेनापतियों ने इनकार कर दिया युद्ध पर जाने सै...उन्होंने कहा कि यह हार निचित हैं तो हम अपना मुंह पराजय की कालिख से पोतने जाने को तैयार नहीं और अपने सैनिकों को भी व्यर्थ कटवाने के लिए हमारी मर्जी नहीं। मरने की बजाय हार जाना उचित है। मर कर भी हारना है जीत की तो कोई संभावना मानी नहीं जा सकती। समाट भी कुछ नहीं कह सकता था बात सत्य थी ऑकड़े सही थे। तब उसने गाँव मैं बसे एक फकीर से जाकर प्रार्थना की कि क्या आप मरी फौजो कै सेनापति बन कर जा सकते है? यह उसके सेनापतियो को समञ्ञ में ही नहीं आई बात। सेनापति जब इनकार करते हों तो एक फकीर को--जिसे युद्ध का कोई अनुभव नहीं जो कभी युद्ध पर गया नहीं जिसने कभी कोई युद्ध किया नहीं जिसने कभी युद्ध की कोई बात नहीं की--यह बिलकुल अव्यावहारिक आदमी को आगे करने का क्या प्रयोजन है? लेकिन वह फकीर राजी हो गया। जहाँ बहुत-से व्यावहारिक लोग राजी नहीं होते वहाँ अव्यावहारिक लोग राजी हो जाते हैं। जहां समझदार पीछे हट जाते हैं वहां जिन्हें कोई अनुभव नहीं है वे आगे खड़े हो जाते हैं। वह फकीर राजी हो गया। समाट भी डरा मन मैं लेकिन फिर भी ठीक था। हारना भी था तो मर कर हारना ही ठीक था। फकीर के साथ सैलिकों को जाने मैं बड़ी घबड़ाहट हुई यह आदमी कुछ जानता नहीं! लेकिन फकीर इतने जोश से भरा था सैलिकों को जाना पड़ा। सैनापति भी सैलिकों के पीछे हो लिए कि देखें होता क्या है? जहाँ दुश्मन के पड़ाव पड़े थे उससे थोड़ी ही दूर उस फकीर ने एक छोटे-से मंदिर में सारे सैनिकों को रोका




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