हरि बोलो हरि बोल | Hari Balo Hari Bol
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.8 MB
कुल पष्ठ :
269
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हरि बोलौ हरि बोल हरि वोलौ हरि बोल सुंदरदास के पदों पर दिनांक १ जून से १० जून १९७८ तक हुए भगवान श्री रजनीश के दस अमृत प्रवचनों की प्रथम प्रवचनमाला। आमुख संत सुंदरदास दादू कि शिष्य थे। भगवान श्री का कहना है कि दादू ने बहुत लोग चेताये। दादू महागुरुओं मैं एक हैं। जिसने व्यक्ति दादू सै जागे उतने भारतीय संतों मैं किसी ने नहीं जागे। सुंदरदास पर उनके बालपन मे ही दादू की कृपा हूई। दादू का सुदरदास के गांव धौसा म आना हुआ। सुंदरदास ने उस अपूर्व क्षण का जिक्र इन शब्दों मैं किया है-- दादू जी जब धौंसा आये बालपन हम दरसन पाये। तिनके चरननि नायो माथा उन दीयो मैरे सिर हाथा। यह क्रांति का क्षण जब सुंदर के जीवन मै आया तव वै सात वर्ष के ही थे। सात वर्ष! लोग है कि सत्तर वर्ष के हो जाते है तो भी संन्यासी नहीं होते। निश्चित ही अपूर्व प्रतिभा रही होगी जो पत्थरों के बीच रोशन दीये की तरह मालूम पड़ रहा होगा। सुंदरदास ने कहा है-- सुंदर सतगुरु आपनैं किया अनुग्रह आइ। मोह-निसा मैं सोवते हमको लिया जगाइ।।
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