जगत तरैया भोर की | Jagat Taraiya Bhor Ki
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.8 MB
कुल पष्ठ :
272
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जगत तरैया भोर की पहला प्रवचन दिनांक १९ मार्च १९७७५ श्री रजनीश आश्रम पूना हरि भजते लागे नहीं काल-ज्याल दुख-झाल। ताते राम संभालिए दया छोड़ जगजाल।।१।। जे जन हरि सुमिरन विमुख तासू मुखहू न बोल। रामरूप मे जो पडयो तासौ अंतर खोल।।२। राम नाम के लेव ही पातक जरै अनेक। रे नर हरि के नाम को राखो मन मैं टेक। 1311 नारायन के नाम बिन नर नर नर जा चित्त। दीन भये विललात है माया-वसि न यित्त।॥४।। प्रु की दिशा मँ पहला कदम जव तक न स्वयं ही तार सजँ कु गाने को कुछ नई तान सुरताल नया बन जाने को डे कोई भी लाख वार पर तारो पर झनकार नहीं कोई होगी जब तक न मधु पी करके दीवाना हो मन मैं रह-रह कु उठता नही तराना हो कड़े कोई भी लाख बार पर भौरों मैं
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