जो बोलें तो हरिकथा | Jo Bolein To Harikatha
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
297
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जो बोलै तो हरि कथा समाधिस्थ स्वरः हरिकथा पहला प्रश्न भगवान! जो बोल तो हरिकथा--हरिकथा की यह घटना क्या है? क्या यह घटना मौन व ध्यान की प्रक्रिया से गुजरने के बाद घटती है अथवा प्रार्थना से? हरिकथा का पात्र ओर अधिकारौ कौन है? क्या हम आपके प्रवचर्नो को भी हरिकथा कह सकते है? योग मुक्ता! सहजो का प्रसिद्ध वचन हैः जो सौरै तो सुन्न म जो जागैँ हरिनाम। जो बोरे तो हरिकथा भथकत कर निहकाम।। जीवन जब विचार-मुक्त होता है तो व्यक्ति एक पोली वांस की पौगरी जैसा हो जाता। जैसे बांसुरी। फिर उससे परमात्मा के स्वर प्रवाहित होने लगते हैं। बांसुरी से गीत आता है बांसुरी का नहीं होता। होता तो गायक का है। जिन ओठों पर बांसुरी रखी होती है उन ओठों का होता है। बांसुरी तो सिर्फ बाधा नहीं देती। ऐसे ही कृष्ण बोले ऐसे ही क्राइस्ट बोले। ऐसे ही बुद्ध बोले ऐसे ही मोहम्मद बोले। ऐसे ही. वैद के ऋषि बोले उपनिषद के द्रष्टा बोले। ओर इस सत्य को अलग-अलग तरह से प्रकट किया गया। जैसे कृष्ण कै वचनां को हमने कहा--श्रीमदभगवदगीता। अर्य है--भगवान के वचन। कृष्ण से कुछ संबंध नहीं है। कृष्ण तो मिट गए--शूल्य हो गए। फिर उस शूल्य मैं से जो बहा वह तो परम सत्ता का है। उस शूल्य मैं से जो प्रकट हुआ वह तो पूर्ण का है। और कृष्ण ऐसै शूल्य हुए कि पूर्ण के बहने मैं जरा भी बाधा नहीं पड़ी। रंचमात्र भी नहीं। इसलिए कृष्ण को इस देश मैं हमने पूर्णावतार कहा। राम को नहीं कहा पूर्णावतार। परशुराम को नहीं कहा पूर्णावतार।
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