का सोवें दिन रैन | Ka Sove Din Rain
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.1 MB
कुल पष्ठ :
324
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)का सौवें दिन रैन का सोवै दिन रैन विरहिनी जाग रे। काम क्रोध मद लोभ छोड सव दुंद रे। का सोवै दिन रैन विरहिनी जाग रे।। भवसागर की आस छंड सव फंद २े। फिरि चलु आपन देस यही भल रंग २े॥ सुन सखि पिय कै रुप तो बरनत ना बने। अजर अमर तो देस सुगंध सागर भरे।। फूलन सैज संवार पुरुष बैठे जहां। द्र अग्र के चंवर हंस राजै जहां।। कोटिन भानु अंजोर रोम एक मँ कहां उगे चंद्र अपार भूमि सोभा जहां।। सेत बरन वह देस सिंहासन सेत है। सेत छत्र सिर धरे अभय पद् देत है।।
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