कहे कबीर दीवाना | Kahe Kabir Diwana
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.6 MB
कुल पष्ठ :
359
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कहै कबीर दिवाना मैं ही इक वौराना 11 मई 1975 प्रात श्री ओशो आश्रम पूना जब मैं भूला रे भाई मेरे सत गुरु जुगत लखाई। किरिया करम अचार मैं छाड़ा छाड़ा तीरथ नहाना। सगरी दुनिया भई सुनायी मैं ही इक वौराना || ना मैं जानूं सेवा वंदगी ना मैं घंट बजाई। ना मैं मुरत धरि सिंहासन ना मैं पृहुप चढ़ाई।। ना हरि रीझ्ने जब तप कीन्हे ना काया के जारे। ना हरि रीन्ने घोति छाड़े ना पांचों के मारे।। दाया रखि धरम को पाले जगमुं रहे उदासी। अपना सा जिव सवको जाने ताहि मिले अनिवासी ।। सहै कसवद वदा को त्याने छाडे गरव गुमाना। सत्य नाम ताहि को मिलि टे कटै कवीर दिवाना।। एक अंधेरी रात की भांति है तुम्हारा जीवन जहां सूरज की किरण तो आना असंभ व है मिट्टी के दिए की छोटी सी लौ भी नहीं है। इतना ही होता तव भी ठीक था निरंतर अंधेरे में रहने के कारण तुमने अंघेरे को ही प्रकाश भी समझ लिया है। औ र जब कोई प्रकाश से दूर हो और अंधेरे को ही प्रकाश समझ ले तो सारी यात्रा अ वरुद्ध हो जाती है। इतना भी होश वना रहे कि मैं अंधकार में हूं तो आदमी खोज ता है तड़फता है प्रकाश के लिए प्यास लेती है टटोलता है गिरता है उठता है. मार्ग खोजता है गुरु खोजता है लेकिन जब कोई अंधकार को ही प्रकाश समझ ले तब सारी यात्रा समाप्त हो जाती है। मृत्यु को ही कोई समझ ले जीवन तो फिर
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Amar kumar
at 2021-10-11 17:03:56"link not working"