कानों सुनी सो झूठ सब | Kano Suni So Jhooth Sab
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.8 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कानों सुनी सो झूठ सब सतगुरु किया सुजान प्रवचन १ दिनांक ११.७.७७ श्री रजनीश आश्रम पूना जन दरिया हरि भक्ति की गुरं बताई वाट। भुला उजड़ जाए था नरक पडन के घाट। नहिं था राम रहीम का मँ मतिहीन अजान। दरिया सुध-वुध ग्यान दै सतगुरु किया सुजान।। सतगुरु सब्दां मिट गया दरिया संसय सोग। ओषध दे हरिनाम का तन मन किया निरोग।। रंजी सास्तर ग्यान की अंग रही लिपटाय। सतगुरु एकि सब्द से दीन्ही तुरत उडाय।। जैसे सतगुरु तुम करी मुझसे कछू न होए। विष-भांडे विष काढ़कर दिया अमीरस मोए। सब्द गहा सुख ऊपजा गया अंदेसा मोहि। सतगुरु ने किरपा करी खिड़की दील्हीं खोहिं।। पान बैल सै बीछुड़ै परदेसां रस देत। जन दरिया हरिया रहै उस हरी वेल के हेत।। अथातो प्रेम जिज्ञासा! अव प्रम की जिन्ञासा। अव पुनः प्रम की वात। दो ही बात हैँ परमात्मा की--ध्यान की या प्रेम की। दो ही मार्ग हैं--या तो शून्य हो जाओ या प्रैम मैं पूर्ण हो जाओ।
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