करुना और क्रांति | Karuna Aur Kranti

Karuna Aur Kranti by आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

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आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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करुणा और क्रांति १ करुणा के फूल मेरे प्रिय आत्मन्‌ एक पहाड़ी रास्ते पर सुबह से ही बड़ी भीड़ है। सूरज बाद मैं निकला है। उस रास्ते पर लोग पहले सै निकल पढ़े हैं। भीड़ बहुत है-सारा गांव आसपास के छोटे गांव पहाड़ी की तरफ क्षागे चले जाते हैं। लेकिन भीड़ बड़ी उदास है। कोई खुशी का त्यौहार नहीं मालूम पड़ रहा है। लोग आंखें नीचे झुकाये हुए हैं और लोगों के प्राणों पर बड़े पत्थर रखे हुए मालूम पड़ रहे हैं। इस भीड़ मैं तीन लोग और थे जो अपने कंधों पर सूलियां लिये हुए थे। वह भीड़ ऊपर पहुंच गयी है। यह बड़े व्यंग्य की बात है कि किसी को अपनी सूली खुद ही ढोनी पड़ै। वे सूलियां खुद ही उत्त ही गाइनी पड़ी है! उन तीन लोगो नै अपनी-अपनी सूलियां गाड़ ली है। ओर उस उदास भीड़ मँ उन तीनों लोगों को सूली पर लटका दिया गया है। उन्म एक आदमी परिचित है वह मरियम का वेदा है जीसस। लेकिन दो आदमी बिलकुल अनाम हैँ उनका कोई नाम पता नहीं है कि वे आदमी कौन हैं? कहते हैं कि वे दोनों चोर थे। दो चोरों और बीच मैं जीसस को तीनों को सूती पर लटका दिया गया है। उनके हाथों मैं कील ठोक दिये गये हैं। जीसस के सिर पर कांटों का ताज पहनाया हुआ है। और जीसस की आंखों मैं जब भी कोई झांकेगा तो उसै पता चलेगा कि जैसे दुख पीड़ा और उदासी साकार हो गयी हो। यह घटना घटे बहुत दिन हो गये हैं। लैकिन ऐसा लगता है कि यह घटना बड़ी सम-सामयिक है। बड़ी कंटम्प्रेरी है। कृष्ण को बांसुरी बजाते हुए नाचते हुए सोचने मैं भी कठिनाई होती है। ऐसा लगता है कि ऐसा आदमी शायद कभी न हुआ हो। तो यह भी हो सकता है कि भविष्य मैं भी कोई न हो क्योंकि आदमी के हॉंठ गीत गाने भूल चुके हैं। और बांसुरी बजाने की तो बात ही नहीं है। तो कृष्ण बहत काल्पनिक और स्वप्निल्र मालूम होते हैं। बद्ध की




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