कष्ट दुःख और शांति | Kashta Dukh Aur Shanti

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आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कशता दुख ओर शाति वैज्ञानिक मानस सोचा करता था कि अव्यक्तिगत ज्ञान की विषयगत ज्ञान की संभावना है। असल में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का यही ठीक-ठीक अर्थ हुआ करता था। अव्यक्तिगत ज्ञान का अर्थ है कि ज्ञाता अर्थात जानने वाला केवल दर्शक बना रह सकता है। जानने की प्रक्रिया में उसका सहभागी होना जरूरी नहीं है। इतना ही नहीं बल्कि यदि वह जानने की प्रक्रिया में सहभागी होता है तो वह सहभागिता ही ज्ञान को अवैज्ञानिक बना देती है। वैज्ञानिक ज्ञाता को मात्र द्रष्टा बने रहना चाहिए अलग-थलग वने रहना चाहिए किस भी तरह उससे जुडना नही चाहिए जिसे कि वह जानता है। लेकिन अब बात ऐसी नहीं रही। विज्ञान प्रौढ़ हुआ है। इन थोड़े से दशकों में पिछले तीन-चार दशकों में विज्ञान अपने ्रमपूर्ण दृष्टिकोण के प्रति सचेत हुआ है। ऐसा कोई ज्ञान नहीं जो अव्यक्तिगत हों। ज्ञान का स्वभाव ही है व्यक्तिगत होना। और ऐसा कोई ज्ञान नहीं जो असंबद्ध हो क्योंकि जानने का अर्थ ही हैं संबद्ध होना। कंवल दर्शक की भांति किसी चीज को जानने की कोई संभावना नहीं है सहभागिता अनिवार्य है। इसलिए अब सीमाएं उतनी स्पष्ट नहीं रही हैं। पहले कवि कहा करता था कि उसके जानने का ढंग व्यक्तिगत हैं। जब एक कवि किसी फूल को जानता है तो वह उसे पुराने वैज्ञानिक ढंग से नहीं जानता। वह बाहर-बाहर से ही देखने वाला नहीं होता। किसी गहरे अर्थ में वह वही बन जाता हैः वह उत्रता जाता है फूल में और फूल को उतरने देता है अपने में और एक गहन मिलन घटता है। उस मिलन में फूल का स्वरूप जाना जाता है। अब विज्ञान भी कहता है कि जब तुम किसी चीज को ध्यानपूर्वक देखते हो तो तुम सहभागी होते हो--चाहे कितनी ही छोटी क्यों न हो वह सहभागिता लेकिन फिर भी तुम सहभागी होते हो। कवि कहा करता था कि जब तुम किसी फूल की तरफ देखते हो तो वह फिर वही फूल नहीं रहता जैसा कि वह तब था जब किसी ने उसकी ओर देखा न था क्योंकि तुम उसमें प्रवेश कर चुके हो उसका हिस्सा बन चुके हो। तुम्हारी दृष्टि भी अब उसका हिस्सा हों जाती है पहले वह वैसा न था। जंगल में किसी अज्ञात पगडंडी के किनारे खिला एक फूल जिसके पास से कोई गुजरा नहीं वह एक अलग ही फुल होता ह फिर अचानक कोई आ जाता है जो देखता है उसकी तरफ--वह फूल अब वही न रहा। फूल बदल देता है दष्टा को और दृष्टि बदल देती है फूल को। एक नई गुणवत्ता प्रवेश कर गई। लेकिन यह ठीक था कवियों के लिए--कोई भी उनसे बहुत तार्किक और वैज्ञानिक होने की आशा नहीं रखता--लेकिन अब तो विज्ञान भी कहता है कि यही प्रयोगशालाओं में घट रहा हैः जब तुम निरीक्षण करते हो तो निरीक्षण की वस्तु वही नहीं रह जाती उसमें देखने वाला शामिल हों जाता है और गुणवत्ता बदल जाती है। अब भौतिकशास्त्री कहते हैं कि जब कोई उन्हें नहीं रहा होता तो परमाणु अलग ही ढंग से व्यवहार करते हैं। जैसे ही तुम उन्हें देखते हो वे दुत अपनी गतियो बदल




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