क्रांति सूत्र | Kranti Sutra
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
736 Kb
कुल पष्ठ :
113
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)क्रांति सूत्र समय में जो कुछ भी है सभी मरणधर्मा है। समय मृत्यु की. गति है उसके ही चर णों का वह माप है। समय में दौड़ना मृत्यु में दौड़ना है और सभी वहीं दौड़े जाते | मै समी को स्वयं मृत्यु के मुंह में दौड़ते देखता हूं। ठहरो और सोचो! आपके पैर आपको कहां लिए जा रहे हैं? आप उन्हें चला रहे हैं या कि वे ही आपको च ला रहे हैं। प्रतिदिन ही कोई मृत्यु के मुंह में गिरता है और आप ऐसे खड़े रहते हैं जैसे यह दु भग्यि उम पर ही गिरने को था। आप दर्शक बने रहते हैं। यदि आपके पास सत्य को देखने की आंखें हों तो उसकी मृत्यु में अपनी भी मृत्यु दिखाई पड़ती है। वहीं आपके साथ भी होने को है-वस्तुत हो ही रहा है। आप रोज-रोज मर ही रहे हैं । जिसे आपने जीवन समझ रखा है वह क्रमिक मृत्यु है। हम सब धीरे-धीरे मरते रहते हैं। मरण की यह प्रक्रिया इनती धीमी है कि जब तक कि वह अपनी पूर्णता नहीं पा लेती तब तक प्रकट ही नहीं होती। उसे देखने के लिए विचार की सूक्ष्म दृष्टि चाहिए। चर्मचक्षुओं से तो केवल दूसरों की मृत्यु का दर्शन होता है किंतु विचार-चक्षु स्वयं को मृत्यु से घिरी और मृत्योन्मुख स्थिति को भी स्पष्ट कर देते हैं। स्वयं को इस सं कट की स्थिति में घिरा. जानकर ही जीवन को पाने की आकांक्षा का उद्भव होता है। जैसे कोई जाने कि वह जिस घर में वैठा है उसमें आग लगी हुई है और फिर उस घर के वाहर भागे वैसे ही स्वयं के गृह. को मृत्यु की लपटों से घिरा जान हमारे भीतर भी जीवन को पाने की तीव्र ओर उत्कट अभीप्सा पैदा होती है। इस अभीप्सा मे वड़ा ओर कोई सौभाग्य नही क्योकि वही जीवन के उत्तरोत्तर गहरे र तरों में प्रवेश दिलाती है।
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