कृष्ण स्मृति | Krishna Smrati

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आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कृष्ण स्मृति कृष्ण-स्मृति ओशो द्वारा कृष्ण के बहु-आयामी व्यक्तित्व पर दी गई 21 वार्ताओं एवं नव- संन्यास पर दिए गए एक विशेष प्रवचन का अप्रतिम संकलन। यही वह प्रवचनमाला है जिसके दौरान ओशो के साक्षित्व मे सन्यास ने नए शिखरे को छने के लिए उतोरणा ली और नव संन्यास अंतर्गष्ट्रीय की संन्यास -दीक्षा का सूत्रपात हुआ। भूमिका सुप्रसिद्ध कवि एवं लेखक डा. दामोदर खड़से एम.ए.एम .एडपीएच . डी. कृष्ण स्मृति हीरे जो कभी परखे ही न गए. ओशो पूणता का नाम कृष्ण जीवन एक विशाल कैनवास है जिसमें क्षण-क्षण भावों की कचौ से अनेकानेक रेग मिल-जुल कर सुख-दुख के चित्र उभारते है। मनुष्य सदियों से चिर आनद की खोज में अपने पल-पल उन चित्रो की बेहतरी के लिए जुरात है। ये चत्र हजारों वर्षो से मानव- संस्कृति के अंग बन चुके हैं। किसी एक के नाम का उच्चारण करते ही प्रतिकृति हेसती- मुस्काती उदित हो उठती है। आदिकाल से मनुष्य किसी चित्र को अपने मन में बसाकर कभी पूजा तो कभी आराधना तो कभी चिंतन- मनन से गुजरता हुआ ध्यान की अवस्था तक पहुंचता रहा है। इतिहास में पुराणों में ऐसे कई चित्र हैं जो सदियों से मानव संस्कृति को प्रभावित करते रहे हैं। महावीर क्राइस्ट बुद्ध राम ने मानव - जाति को गहरे छुआ है। इन सबकी बातें अलग-अलग हैं। कृष्ण ने इन सबके रूपों - गुणों को अपने आपमें समाहित किया है। कृष्ण एक ऐसा नाम है जिसने जीवन को पूर्णता दी।




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