क्या सोवे तू बावरी | Kya Sove Tu Bawari
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
646 KB
कुल पष्ठ :
74
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)क्या सोवे तू बावरी तो पहली बात सबसे पहले तो जैसा कि धीरू भाई ने कहा जरूर एक एसा संगठन चाहिए युवकों का जो किसी न किसी रूप में सैन्य ढंग से संगठित हों। संगठन तो चाहिए ही। और जैसा काकू भाई ने भी कहा जब तक एक अनुशासन एक डिसिप्लेन न हो तब तक कोई संगठन आगे नहीं जा सकता है--युवकों का तो नहीं जा सकता है। तो काक् भाई का सुझाव और धीरू भाई का सुझाव दोनों उपयोगी हैं। चाहे रोज मिलना आज संभव न हो पाए तो सप्ताह में तीन बार मिलें। अगर वह भी संभव न हों तो दो बार मिलें। एक जगह इकट्ठें हों। एक नियत समय पर घंटे-डेढ़ घंटे के लिए इकट्ठे हों। और जैसा कि एक मित्र ने कहा कि मित्रता कैसे बढ़े ? मित्रता बढ़ती है साथ में कोई भी काम करने से। मित्रता बढ़ने का और कोई रास्ता नहीं है। काकू भाई ने जो कहा उस तरह परिचय बढ़ सकता है मित्रता नहीं बढ़ेगी। मित्रता बढ़ती हैं कोई भी काम में जब हम साथ होते हैं। अगर हम एक खेल में साथ खेले तो मित्रता बन पाएगी मित्रता नहीं रुक सकती है। अगर हम साथ कवायद करें तो मित्रता बन जाएगी। अगर हम साथ ग भी खोद तो भी मित्रता बन जाएगी। अगर हम साथ खाना भी खाएं तो भी मित्रता बन जाएगी। हम कोई काम साथ करें तो मित्रता बननी शुरू होती है! हम विचार भी करें साथ बैठकर तो भी मित्रता बननी शुरू होगी। और वे ठीक कहते हैं कि मित्रता बनानी चाहिए। लेकिन वह सिर्फ परिचय होता है फिर मित्रता गहरी होती है जब हम साथ खड़े होते हैं साथ काम करते हैं। अगर कोई ऐसा काम हमें करना पड़े जिसको हम अकेला कर ही नहीं सकते जिसको साथ ही किया जा सकता है तो मित्रता गहरी होनी शुरू होती है। तो यह ठीक है कि कुछ खेलने का उपाय हों कुछ चर्चा करने का उपाय हो। बैठकर हम साथ बात कर सकें खेल सकें। और वह भी उचित है कि कभी हम पिकनिक का भी आयोजन करें। कभी कहीं बाहर आउटिंग के लिए भी इकट्ठे लोग जाएं। मित्रता तो तभी बढ़ती है जब हम एक-दूसरे के साथ किन्हीं कामों में काफी देर तक संलग्न होते हैं। और एक जगह मिलना बहुत उपयोगी होगा। एक घंटे भर के लिए डेढ़ घंटे के लिए। वहां मेरी दृष्टि है कि जैसा उन्होंने उदाहरण दिया कुछ और संगठनों का। उन संगठनों की रूपरेखा का उपयोग किया जा सकता है। उनकी आत्मा से मेरी कोई स्वीकृति नहीं है उनकी धारणा और दृष्टि से मेरी कोई स्वीकृति नहीं है। पूरा विरोध है क्योंकि वे सारी संस्थाएं जो अव तक चलती रही है एक अर्थों में क्रोति-विरोधी संस्थाएं हैं। लेकिन उनकी रूपरेखा का पूरा उपयोग किया जा सकता है साथ में जोड़ देने का है जों। वह काकू भाई समझते हैं कि साथ में अगर कवायद की जाए तो उसके बड़े गहरे परिणाम होते हैं। जब हमारे शरीर एक साथ एक रिदम में कुछ काम करतें हैं तो हमारे मन भी थोड़ी देर में एक रिदम में आना शुरू हों जाते हैं। साथ में जोड़ देने का जो है वह यह है कि अकेली कवायद को मैं पसंद नहीं करता हूं क्योंकि वह
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