महावीर वाणी भाग २ | Mahavir Vani Vol 2
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.5 MB
कुल पष्ठ :
182
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महावीर वाणी भाग-२ अप्रमाद-सूत्र 1 सुतस् यावी पवद्धजीवी न वीससे पंडिए आसुपतने घोर मुहा अवल शरीर मारुयपवौ व चरणमे।। आप्र पंडित पुरुष को मोह-निद्रा मं सोये हूए संसारी मनुष्यों कं बीच रहकर भी सव तरह से जागरूक रहना चाहिए ओर किसी का विश्वास नहीं करना चाहिए। काल निर्दयी है ओर शरीर दरबल यह जानकर भारंड पक्षी कौ तरह अप्रमत्त-माव से विचरना चाहिए [] पहले कुछ प्रश्न। एक मित्र ने पूछा है मनुष्य जीवन है दुरलम लेकिन हम आदमियों को उस दुर्लमता का बोध क्यो नही होता? श्रवण करने कौ कला कया है? कलियुग सतयुग मनोस्थितियों के नाम हैं? क्या बुद्धत्व को भी हम एक मनोस्थिति ही समझें? जो मिला हुआ है उसका बोध नहीं होता। जो नहीं मिला है उसकी वासना होती है इसलिए बोध होता है। दांत आपका एक टूट जाये तो ही पता चलता है कि था। फिर जीम चौबीस घंटे वहीं-वहीं जाती है। दांत था तो कभी नहीं गयी थी अब नहीं है खाली जगह है तो जाती है। जिसका अभाव हों जाता है उसका हमें पता चलता है। जिसकी मौजूदगी होती है उसका हमें पता नहीं चलता। मौजूदगी के हम आदी हो जाते हैं। हृदय धड़कता है पता नहीं चलता श्वास चलती है पता नहीं चलता। श्वास में कोई अडचन आ जाये तो पता चलता है हृदय रुग्ण हो जाये तो पता चलता है। हमें पता ही उस बात का चलता है जहां कोई वेदना कोई दुख कोई अभाव पैदा हो जाये । मनुष्यत्व का भी पता चलता है हम आदमी धे इसका भी पता चलता है जव आदमियत खो जाती है हमारी मौत छीन लेत है हमसे। जव अवसर खो जाता है तव हनं पता चलता है। इसलिए मौत की पीडा वस्तुतः मौत की पीडा नहीं ह बल्कि जो अवसर खो गया उसकी पीडा है। अगर हम मरे
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