नाम सुमिर मन बावरे | Nam Sumir Man Bawre
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.7 MB
कुल पष्ठ :
285
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नाम सुमिर मन बावरे पहला प्रवचनतुमसों मन लागों है मोरातुमसों मन लागों है मोरा। हम तुम बैठे रही अटरिया भला बना है जोरा। । सत की सेज विछाय सुति रहि सुख आनेद घनेरा। करता हरता तुमह आहट करौ मै कौन निय ।। रद्यो अजान अब जानि परयो है जव चितयो एक कोग। आवागमन निवारह् सोड[] आदि-अंत का आहिऊं चोर। जगजीवन विनती करि मागे देखत दरस सदा रहो तोरा। । अब निर्वाह किए बनि आइहि लाय प्रीति नहिं तोरिय डोर ।। मन महे जाइ फकीरी करना। रहे एकंत तेत ते लागा राग निर्त नहिं सुनना।। कथा चारचा पदे -सुनै नहि नाहि बहत बक बोलना। ना धिर रहै जह तहं धावै यह मन अह हिंडोलना। । मँ तँ गर्व गुमान विवादंहि सवै दूर यह करना। सीतल दीन रहै मरि अतर गहै नाम कौ सरना । जल पान की करै आस नहि आहै सकल भरमना। जगजीवनदास निहारि निरषिकं गहि रह गुरु की सरना।। भूलु फलु सुख पर नही अवह होहु सचेत। सोंइ[] पठवा तोहि का लावो तेहि ते हेत।। तज् आसा सव जट ही संग साथी नहिं कोय। केउ केह् न उवारिही जेहि पर होय सो होय।। कहवो ते चलि आयह् कहो रहा अस्थान । सो सुधि विसरि गई तोहि अव कस भयसि हेवान। । काया- नगर सोहावना सुख तबहीं पै होय। रमत रै तेहि भीतर दुःख नहीं व्यापै कोय।। मृत-मेडल कोऽ धिर नही आवा सो चलि जाय । -गाफिल हवै फंदा परयौ जहे तहं गयो विलाय ।। एक नई यात्रा पर निकलते हैं आज! बुद्ध का कृष्ण का क्राइस्ट का मार्ग तो राजपथ है।
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