नेति नेति | Neti Neti
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.5 MB
कुल पष्ठ :
440
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नेति नेति एक छोटी-मी कहानी मे इम शिविर की पहली चर्चा मैं शुरू करना चाहता हूं। बहुत पुराने दिनों की वात है। एक सम्राट अपने जीवन के अंतिम दिनों की गिनती कर रहा था और बहुत चिंतित भी था। मृत्यु से नहीं वरन अपने तीन लड़कों से . जिनके हाथ में उसे राज्य को सौंपना था। वह यह निर्णय करने में असमर्थ था क किसके हाथ में राज्य की शक्ति दे दे क्योंकि शक्ति केवल उन हाथों में ही शु भ होती है जो शांत हों। और यह निर्णय बहुत कठिन था कि उन तीनों में शांत कौन है? कैसे परीक्षा हो? कैसे जाना जा सके कि कौन व्यक्ति उस राज्य के हित में होगा कौन अहित में? कुछ चीजें होती हैं जो वाहर से नापी जा सकती हैं लेकिन जीवन में जो भी मह त्वपूर्ण है उसे नापने के लिए न कोई बांट है न कोई तराजु है। कुछ चीजें हैं जो वाहर से पहचानी जा सकती हैं लेकिन जीवन में जो भी महत्व पूर्ण है उसे बाहर से पहचानने का भी कोई उपाय नहीं है। कैसे पहचाना जा सके कैसे जाना जा सके क्या रास्ता हो? उस सम्राट ने एक फकीर से पूछा। उस फकीर ने कोई रास्ता वताया। और दूसरे दन सुवह उसने तीनों अपने वेटों को बुलाया और उन्हें सौ-सौ रुपये दिये और कहा कि तीन जो महल हैं उन तीनों के नाम-ये सौ-सौ रुपये मैं देता हूं। सौ रुपये में ऐसी चीजें खरीदना कि पूरा महल भर जाये. कुछ जगह खाली न वचे। जो तीनों में सर्वाधिक सफल हो जायेगा वही सम्राट बनेगा वही राज्य का अधिकारी हो ज यगा। कुल सौ रुपये! ओर महल उन राजकुमारों के बहुत बड़े थे। पहले राजकुमार ने सोचा सौ रुपये से क्या महल भरा जा सकेगा? वह गया जुआ
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