ओशो ध्यान योग | Osho Dhyan Yog

Osho Dhyan Yog by आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

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आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ओशो ध्यान योग ध्यान में घटने वाली घटनाओं बाधाओं अनुभूतियों उपलब्धियों सावधानियों सुझावों त्था निर्देशों संबंधि साधको को लिखे गए ओशो कं इक्कीस पत्र अंततः सब खो जाता है सुह सूर्योदय के स्वागत मे जैसे पक्ष गीत गाते ही ध्यानोदय के पूर्व भी मन-प्राण में अनेक गीतों का जन्म होता है। वसंत में जैसे फूल खिलते हैं ऐसे ही ध्यान के आगमन पर अनेक-अनेक सुरगंधें आत्मा को घेर लेती हैं। और वर्षा में जैसे सब ओर हरियाली छा जाती है ऐसे ही ध्यान वर्षा में भी चेतना नाना रंगों से भर उठती है यह सब और बहुत-कुछ भी होता है। लेकिन यह अंत नहीं बस आरंभ ही है। अंततः तो सब खो जाता है। रंग गंध आलोक नाद--सभी विलीन हों जाते हैं। आकाश जैसा अंतर्भाकाश (इनर स्पेस) उदित होता है। शून्य निर्गुण निराकार। उसकी करो प्रतीक्षा। उसकी करो अभीप्सा। लक्षण शुभ हैं इसीलिए एक श्षण भी व्यर्थ न खोओं और आगे बढ़ों। मैं तो साथ हूं ही। मौन के तारों से भर उठेगा हृदयाकाश जव पहले- पहले चेतना पर मौन का अवतरण होता दै तो संध्या की भाति सव फीका-फीका ओर उदास हो जाता है जैसे सूर्य ल गया हो रत्रि का अंधेरा धीरे-धीरे उतरता हो ओर आकाश धका-धका हो दिनभर कं श्रम से। लेकिन फिर आहिस्ता-आहिस्ता तारे ठगने लगते हैं और रात्रि के सौंदर्य का जन्म होता है। ऐसा ही होता है मौन में भी। विचार जातें हैं तो उनके साथ ही एक दुनिया अस्त हो जाती है। फिर मौन आता है तो उसके पीछे ही एक नयी दुनिया का उदय भी होता है। इसलिए जल्दी न करना। घबड़ाना भी मत। धैर्य न खोना। जल्दी ही मौन के तारों से हदयाकाश भर उठेगा। प्रतीक्षा करों और प्रार्थना करो। ऊर्जा-जागरण से देह- शून्यता ध्यान शरीर की विद्युत-ऊर्जा (बॉडी इलेक्ट्रिसिटी ) को जगाता है--सक्रिय करता है--प्रवाह मान करता है। तू भय न करना। न ही ऊर्जा-गतियों को रोकने की चेष्टा करना। वरन गति के साथ गतिमान होना--गति के साथ सहयोग करना। धीरे-धीरे तेरा शरीर-भान भौतिक-भाव (मैटेरियल-सेन्स) कम होता जाएगा और अभौतिक




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