प्रेम है द्वार प्रभु का | Prem Hai Dwar Prabhu Ka

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आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रेम है द्वार प्रभु का भय या प्रेम ? मनुष्य जाति भय से चिता से दुख और पीड़ा से आक्रांत है और पांच हजार वर्षों से-आज ही नहीं। जब आज ऐसी वात कह जाती है। कि मनुष्यता भय से चिंता से तनाव से अशांति से भर गई है तो ऐसा श्रम पैदा होता है जैसे पहले लोग शांत थे आनंदित थे। यह बात शत प्रतिशत असत्य है कि पहले लोग शांत थे और चिंता रहित थे। आदमी जैसा आज है हमेशा था। ढाई हजार वर्ष पहले वुद्ध लोगों को समझा रहे थे. शांत ह ने के लिए। अगर लोग शांत थे तो शांति की वा समझाने की क्या जरूरत थी? पांच हजार वर्ष पहले उपनिषद के ऋषि भी लोगों को समझा आनंदित होने के लए। लोगों को समझा रहे थे दुख से मुक्त होने के लिए। लोगों को समझा रहे थे प्रेम करने के लिए। अगर लोग प्रेमपूर्ण थे और शांत थे तो उपनिपद के ऋषि पागल रहे होंगे। किसको समझा रहे थे। दुनिया में अब तक ऐसी एक भी पुरानी से पुरानी किताव नहीं है जो यह न कहती ह 1 कि आज का के लोग अशांत हो गए हैं। मैं छह हजार वर्ष पुरानी चीन की एक कि ताव की भूमिका पढ़ रहा था। उस भूमिका में लिखा है कि आजकल के लोग अशांत है नास्तिकता हैं बहुत बुरे हो गए हैं। पहले के लोग अच्छे थे। छह हजार साल पहले की किताब कहती है पहले के लोग अच्छे थे। ये पहले के लोग कब थे? ये पहले लो गों की बात एक कल्पना (ऊलजी) और सपने से ज्यादा नहीं है। आदमी हमेशा से अ शांत रहा है और इसलिए अगर हम यह समझ लें कि आज अशांत रै आज भय आ क्रांत हैं आज चिंतित और दुखी हैं तो हम जो भी निदान खोजेंगे वह गलत होगा। आज तक की पूरी मनुप्यता किन्हीं अर्थों में गलत रही है श्रांत रही है। कंवल आज




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