प्रेम के फूल | Prem Ke Phool

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आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रेम के फूल १ प्रेम के फूल प्रिय सोहन प्रेम। तेरा पत्र मिला | कविता से तो हृदय फूल गया। सुना था प्रेम से काव्य का जन्म होता है तेरे पत्र में उसे साकार देख लिया। प्रेम हो तो धीरे-धीरे पूरा जीवन ही काव्य हो जाता है। जीवन सौंदर्य के फूल प्रेम की धूप में ही खिलते हैं। यह भी तूने खूब पूछा है कि मेरे हृदय में तेरे लिए प्रेम क्यों हैं? क्या प्रेम के लिए भी कोई कारण होते हैं? और यदि किसी कारण मे प्रेम हो तो क्या हम उसे प्रेम कहेंगे? पागल प्रेम तो सदा ही अकारण होता है। यहीं उसका रहस्य और उसकी पवित्रता है। अकारण होने के कारण ही प्रेम दिव्य है और प्रभु के लोक का है। फिर मैं तो उसी भांति प्रेम से भरा हूं. जैसे दीपक में प्रकाश होता है। पर उस प्रकाश के अनुभव के लिए आंखें चाहिए। तेरे पास आंख थीं तो तूने उस प्रकाश को पहचाना इसमें मेरी नहीं तेरी ही विशेषता है। वहां सब को मेरे प्रणाम कहना | माणिक वाव्‌ ओर वच्चो को प्रेम।




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