समाधी के सप्तद्वार | Samadhi Ke Saptdwar
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
290
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्माधि के सप्त दवार पहला प्रवचन स्रोतापत्न बन ध्यान-शिविर आनंद-शिला अंबरनाथ रात्रि ५ फरवरी है उपाध्याय निर्णय हो चुका है मैं ज्ञान पाने के लिए प्यासा हूँ। अब आपने गुहय मार्ग पर पड़े आवरण को हटा दिया है और महायान की शिक्षा भी दे दी है। आपका सैवक आपसे मार्गदर्शन के लिए तत्पर है। यह शुक्ष है श्रावक तैयारी कर क्योंकि तुझे अकेला यात्रा पर जाना होगा। गुरु केवल मार्ग- निर्देश कर सकता है। मार्ग तो सबके लिए एक है लैकिन यात्रियों के गंतव्य पर पहुंचने के साधन अलग-अलग होंगे। अञ अजित-हदय तू किसको चुनता है? चक्षु-सिद्वात के समतान अर्थात चतुर्मुखी ध्यान को या छः पारअमताओं के बीच सै तू अपनी राह बनाएगा जो सदगुण के पवित्र द्वार हैं और जो ज्ञान के ससम चरण बोधि ओर प्रज्ञा को उपलब्ध कराते है? चतुर्मुखी ध्यान का दुर्गम मार्ग पर्वतीय है तीन बार वह महान है जो उसके ऊँचे शिखर को पार करता है। पारमिता के शिखर तो और भी दुर्गम पथ सै प्राप्त होते हैं। तुझे सात द्वारों से होकर यात्रा करनी होगी। ये सात द्वार सात क्रूर व धूर्त शक्तियों के सशक्त वासनाओं के दुर्ग जैसे है। है शिष्य प्रसन्न रह ओर इस स्वर्ण-नियम को स्मरण रख। एक वार जब तूने सोतापत्न- द्वार को पार कर लिया--सरोतापन्न वह जो निर्वाण की ओर बहती नदी मे प्रविष्ट हो गया-- और एक बार जब इस जन्म मैं या किसी अगले जन्म मैं तेरे पैर ने निर्वाण की इस नदी की. गहराई छू ली तब है संकल्पवान तेरे लिए केवल सात जन्म शेष हैं।
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