सत्य की पहली किरण | Satya Ki Pahli Kiran
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
825 KB
कुल पष्ठ :
117
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सत्य की पहली किरण जीवन ही परमात्मा है। जीवन के अतिरिक्त कोई परमात्मा नहीं। जो जीवन को जी ने की कला लेते हैं वे प्रभु के मंदिर के निकट पहुंच जाते हैं। और जो जीवन से भा गते हैं वे जीवन से तो वंचित होते ही हैं परमात्मा से भी वंचित हो जाते हैं। परमा त्मा अगर कहीं है तो जीवन के मंदिर में विराजमान है और जिन्हें भी उस मंदिर में प्रवेश करना है वे जीवन के प्रति घन्यता का वाच आनंद ओर अनुग्रह का भाव ले कर ही प्रवेश कर सकते हैं। लेकिन आज तक ठीक इससे उल्टी बात समझायी गयी है। आज तक समझाया गया है जीवन से पलायन (एस्केप) जीवन से पीठ फेर लेना जीवन मे दूर हट जाना जीवन ने मुक्ति की कामना। आज तक यही सव निखाया गया है और इसके दुष्परिणाम हुए हैं। इसके कारण ही प्रथ्वी एक नरक और दुख का स्थान वन गयी है। जो पृथ्वी स्वर्ग वन सकती थी वह नरक वन गयी है। मैंने सुना है एक संध्या स्वर्ग के द्वार पर किसी व्यक्ति ने जाकर दस्तक दी। पहरेदार ने पूछा तुम कहां से आते हो? उसने कहा मंगल ग्रह से आ रहा हूं। पहरेदार ने कहा तुम नरक जाओ। यह द्वार तुम्हारे लिए नहीं है। स्वर्ग के दरवाजे तुम्हारे लए नहीं हैं। अभी नरक जाओ। वह आदमी गया भी न था कि उसके पीछे एक और आदमी ने भी द्वार खटखटाया। पहरेदार ने फिर पूछा-तुम कौन हो? उसने कहा मैं एक मनुष्य हूं और पृथ्वी से आया हूं। द्वारपाल ने दरवाजा खोल दिया और कहा तो तुम आ जाओ. तुम नरक से ही रहकर आ रहे हो (यू टेव वीन थू हेल आलरेडी ) अब तुम्हें और किसी नरक में जाने की जरूरत नहीं। मनुष्य ने प्रथ्वी की जो दुर्गति कर दी है वह वड़ी हास्यजनक और देखने जैसी है। औ र बहुत भले लोगों ने इस दुर्गति में हाथ बंटाया है। वे सारे लोग जिन्होंने जीवन की निदा की है और जीवन को तिरस्कृत (कन्डम) किया है जिन्होंने जीवन को असार
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