तमसो मा ज्योतिर्गमय | Tamaso Ma Jyotirgamaya

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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तमसो मा ज्योतिर्गमया तमसो मा ज्योतिर्गमय परम का विज्ञान सूरज डूबता है और हम मान लेते हैं कि रात आ गई। वह मानना बड़ा क रात तो वाहर है जो मिट जाती है लेकिन एक रात भीतर भी है. ज के उगने से कभी नहीं मिटती। रात के अंधेरे में हम दिया जला लेते ते हैं प्रकाश हो गया लेकिन अंघेरा ऐसा भी है जहां हम कभी कोई दिया नहीं जल ते और जहां कभी भी प्रकाश नहीं पहुंचता। लेकिन शायद उस अंघेरे का भी हमें को ई पता नहीं है। और जब तक उस का पता न हो तब तक प्रकाश की आकांक्ष 1 भी कैसे पैदा हो सकती है? उपनिपषदों के किसी ऋषि ने गाया है परमात्मा से प्रार्थना की है कि मुझे मृत्यु से अ मृत की ओर ले चल अंघेरे से प्रकाश की ओर ले चल। यह प्रार्थना हमने सुनी है औ र यह भी हो सकता है यह प्रार्थना किन्हीं क्षणों में हमने भी की हो। लेकिन जिन्हें य ह भी पता न हो कि किस अंघेरे को मिटाना है उनकी प्रकाश के लिए की गई प्रार्थ ना का क्या अर्थ हो सकता है? हम एक ही से परिचित हैं जिसे मिटाने के लिए किसी परमात्मा की कोई जरू रत नहीं है आदमी काफी है। वह अंघेरा हमारे पास है। हमारे भीतर भी कोई अंघेरा है जिसका हमें पता नहीं। और जिस दिन भीतर के अंघेरे का पता चल जाए उस दिन रोआं-रोआं श्वांस-श्वांस एक ही प्रार्थना करने लगती है कि कैसे अंघेरे के बाहर जाऊं। सुना है मैंने एक फकीर था शेख फरीद। सुवह-सुवह स्नान करने नदी की तरफ जाता है। रास्ते में एक आदमी मिला और उसने पूछा ईश्वर है? ईश्वर कहां है? ईश्वर




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