चमचागीरी | Chamchagiri
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.14 MB
कुल पष्ठ :
209
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. बरसाने लाल चतुर्वेदी - Dr. Barasane Lal Chaturvedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रनिन्दा श्छ हहूँगा निन्दा रस । सच पूछिये तो अपना हो यह हाल है किचायन ले भोजन न मिले सोने को न मिले कोई नुकसान नही किन्तु परदि दूसरे की निन््दा करने का श्रवसर प्राप्त न हो तो हमारा जीवन औरान हो जाए । .. महंगाई के इस जमाने मे यदि सबसे सस्ता एवं सरल मनीरजन का कोई साधन बचा है तो वह है परनिन्दा । इसके लिए स किसी आाडिटोरियम की श्रावश्यकता है श्र न किन्ही अन्य उपकरणों की न निमनण पत्र छपवाते का झभट न सभा सोसाइटी बताकर श्ुनाव कराने की क्रित्लत न मासिक चन्दा । कम-से-कम एक श्रोता अवश्य चाहिये । श्रौर श्राप निन्दा रस कम पूर्ण आनन्द उठा सकते है । समय की इसमें कोई पाबदी नहीं है। ताश के पत्ते न हो आप ताथ नही खेल सकते कंरम बोडे न हो श्राप कैरम नहीं खेल सकते पर मिन्दा खेल मे ऐसी कोई वाधा नहीं है । खेल में राजा और रक का भेद नही माना जाता । अन्य खेलों में कुछ बहुत मदेंगे है जिन्हे प्रत्येक व्यक्ति नही खेल सकता । परनिन्दा खेल को सभी खेल नही सकते खेलते है । सभी को श्रच्छा लगता है| परनिन्दा मीठी रोटी है जिघर से तोडो उचर से मीठी सुनने वाला भी मग्न है निन्दक भी रसलीन है 1 नि्दा रस के उदगम तथा विकास पर वोई दीध-ग्रम्थ मेरे देखने में नहीं श्राया । सुना है हाल ही में किसी दिय्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में निन्दा रस शोष॑क से एक रुपरेसा प्रस्तुत की गमी है। इस रुपरेसा में वैदिक काल से इसको परपरा का सकेत मिलता है । कवीर- दास जी सैकड़ों बर्पों पुरान कवि हैं । सन्त थे । मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि वे भी किसी निन्दक के सताये हुए थे । उन्होंने लिखा-- निन्दक नियरे राखिये भ्रॉगन चुटो छवाय विन पानी साबुन बिना निर्मल करें सुभाय निनका कबहूं न निस्दिये जो पायन तर होय कंबहूं उडि आंखिन परे पीर घनेरी होय । न
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