गीताबोध | Geetabodh

Geetabodh  by गाँधीजी - Gandhiji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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20 सांख्ययोग [ मंगल प्रभात जब अजुन कुच स्वस्थ हुआ तो भगवान्‌ ने उसे उलाहना दिया ओर कहा, तुमे ऐसा मोह कहाँ से हो गया है ? तेरे जेसे वीर पुरुष को यह शोभा नेहीं देता | परन्तु इतने से अजुन का জীহু दूर होने बाला न था ॥ उसने लड़ाई से इनकार किया और कहा-- “इन सगे-सम्बन्धियों को ओर गुरुजनों को मारकर राजपाट तो क्या, स्वगं का सुख भी नहीं चाहिए। में तो असमंजस में पड़। हूँ; इस समय धमे क्या है, कुद सममः नहीं पड़ता, श्ापकी शरण मे ह मुके धमे सममाइषए ।” ॥ |




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