पादरी डफ साहिब का वृत्तान्त | Padari Daf Sahib Ka Vrittanta

Padari Daf Sahib Ka Vrittanta by जे. सी. आर. यूइंग - J. C. R. Yuing

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९२ डाकर डफ साहिब का बत्तान्त । को प्रसन्न क्रिया क्योंकि वे नहों चाइते थे कि हेश्वर को उस बुलादट कं अनुसार चलने से उसे रोक कि जिस के उस ने बालकपन के समय स्वप्न में सुना था अथात्‌ यह कि इधर भ तेरे करने क लिये रक काम हे ॥ भला वह कौनसा काम था कि जिसमे उसे माने अपने मि का मृत्युपच्र समभे डफ साहिब जाने के उपस्थित हुए ग्रार जिस में सब प्रिय लेगगें का छोडने और दुःख उलाने का तत्पर हुए । वह ता यह था कि जा प्रभु थ ~ € ~~ = 8 श =. ~ यस ख्रोष्ट ने स्वग का जाने से पहिले अपने शिष्यों का यह पिछली आज्ञा दहं थो कि तुम सकल ससार म जाके हर सक मनृप्य के साम्हने सुसमाचार का उपदेश करे और उस आज्ञा के साथ यह बचन भो कहा कि में समय के अंत होने লা प्रतिदिन तम्दाारे संग हूं ॥ प्राचोन समये से उस बचन से शातलि पाके उस आजा के अनुसार लाग निस्‍्तार का सूसमा- चार परदेशियो का देने के लिये जाया करते हे | केवल पुरुष डो नहो बरन स्तिया न भो आनन्द से अपने देश ग्रार घर द्वार के। उसो अभिपष्राग्र से छोड़ दिया है जिस्ते उन से जे अनन्तजो बन




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