धर्म फल सिद्धान्त | Dharm Fal Siddhant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
259
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[१९]
थे। कैबार सम्मेदशिखर शमादि तीर्थौकी यात्रा की, उद्यापन भी
क्यि। दोनों समय दशन, जाप्य, का नियम था] समाधि
मरण के दिन भी जिन-दशेन किये । सभी कडुम्बी उनकी आषा
पालते थे । धन फुटुम्बियों में उनका तीव्रराग नहीं था। सवा
परिणाम अच्छे रहते थे। माता जी के स्वगारोहण से दोनों
पुत्रों को शोक हुआ। रेसे शुम-भावों पूणे श्राशोर्वाद देने वालीं
आत्माओं की न्यूनता है। ““जगद्स्थिरम्” ।
परिडत जी सदा से द्वी धम-सेवन करते रहे प्रतिदिन
पद्न- स्तोत्रों का पाठ, जाप्य, ध्यान, जिनाचां, स्वाध्याय का नियम
उनका जीवन भर निभ गया था। सम्मेदशिखर जी, गिरनारजो
चम्पापुर, पाबापुर, शह्लुश्ञय आदि क्षेत्रों की वन्दनायें की थीं।
तथा अन्य कुद्ठम्बीजनों को तीर्थ-यात्रा धर्मसेवन में लगाये रहते
ये, सन्तान को उचित शिक्षा-सम्पन्न सदाचारी बनाया । परण्डिव
जी ने चावलीमें एक छोटा सा औषधालय खोल रखा था । बिना
मूल्य औषधियां बांटा करते थे। बच्चों की बीमारी फो शीघ्र
दूर कर देते थे। दो दो चार चार कोस के रुम्श वच्चे लाये
जाया करते थे | परिडित जी की चिकित्सा से वे आरोग्य पाते थे,
कितने ही गरीबों पर व्याज छोड़ देते थे |
सेठ पद्मचन्द्र जी आदि के सादर बुलाने पर परिडत जी
तीन चार बार दशलक्षण-पत्रे में आगरा गये। शासत्र प्रवचन
किया। आगरे बालों ने प्रसन्न दोकर पश्डित जी को “'सिद्धांत-
बारिधि” पदवी से सुशोभित किया । परिडते जी को समझाने
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