जैन शिला लेख संग्रह : द्वितीयो भाग : | Jain Shila Lekh Sangrah Bhag 2

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Jain Shila Lekh Sangrah Bhag 2 by पंडित विजयमूर्ति - Pandit Vijaymoorti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० जन-किरखालेख-संग्रह ` [ ५५] सुविहिव श्रम्णोकि निमित्त शाख्त-नेन्रके धारकों, ज्ञानियों और तपोयलसे पुणे ऋषियोंके लिये ( उसके द्वारा) एक संधायन ( एकत्र डोनेका भवन ) बनाया गया । अहेतक्षी समाधि ( निषधा) के निकट, प्रहाड़की ढालपर, बहुत योजनोंसे छाये हुए, और सुन्दर खानोंसे निका- छे हुए पत्थरोंसे, अपनी सिंहप्रस्थी रानी 'शृष्टी” के निमिश षिधामागार-- [ ४६] ओर उसने पाटालिकाओमें रज्ञ-जटित सम्भोंको पचचदत्तर राख पणो ( मुद्राओं ) के व्ययसे प्रतिष्ठापित किया । वहै ( इस समय ) मुरिय कालके १६४ यें वर्षको पूर्ण करता है। वह क्षेमराज, वद्धराज, भिक्षराज ओर घर्मराज है ओर कस्याणको देखता रा है, सुनता रहा है ओर अनुभव करता रहा है । [ १७ ] गुणविरोष-कुशङ, सवे मतोकी पूजा ( सन्मान ) करनेवारा, सवे देवारयोंका संस्कार करानेवाछा, जिसके रथ ओर जिसको सेनाको कमी कोई रोक न सका, जिसका चक्र (सेना) घक्रधुर ( सेना-पति ) कै द्वारा सुरक्षित रहता है, जिसका चक्र प्रवृत्त हे ओर जो राजर्पिवंश-कुछमें उत्पन्न हुआ है, ऐसा मद्दाविजयी राजा श्रीखारवेल है । इस शिछालेखकी प्रसिद्ध घटनाओंका तिथिपत्र-- थी. सी. ( ईसाके पूर्व ) 9 १४६० ( लगभग ) ... केतुभव्‌ ७ ०४६९० ( ऊगभग ) ... कलिंगमें नन्‍्द्शास्रन » [२३० ... अश्योककी रूत्यु ] » २२० ( छगभग ) .-. कालिंगके तृतीय-रोजवेश- का स्थापन] ॐ ¶१७ अ »** खारवेखका जन्म ऋ { #द८ ०८ ,.. मोय॑वंशका अन्त ओर पुष्यमित्रका राज्य प्राप्त करना ] + शरः ५०० ५ खारबेरुका युवराज होना ॐ [ १८० ( कगमग .** सावकर्णि प्रथमका राज्य- प्रारम्भ ]




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