भोजपुरी ग्राम गीत | Bhojpuri Gram Geet
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
448
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नेतं सीहस्स नदितं न व्यग्धस्स न दीपिनो
पारुतो सी्चम्मेन जम्मो नदति गद्रभो ।
` चिर॑पिखो तं खादेय्य गद्रभो हरितं यवं
पारूतो सीहचमेन रवमानो च दूसखयी ॥
विक्रम संवत् की तृतीय शताब्दी में, जब प्राकृत भाषा का बोल-बाला
मा, लोंकगीतों की उन्नति बड़े जोर-शोर से हुईं । राजा 'हाल? या 'शालिवाहन?
के द्वारा संगद्दीत 'गाथा सप्तशती? से पता चलता है कि उस समय लोकगीतों
के बनाने और गाने की घुन बहुत ही अधिक थी। करोड़ गाथाओं में से
केवल सात सो गाथाएँ चुनकर इस कोश में संणहीत कर दी गई हैं ओर
काल के गाल से बचा ली गई हैं। ये गाथाएँ सरस गीति-काव्य के उत्कृष्ट
नमूने हैं। रस से सनी इन गाथाओओओं को पढ़कर लोक-साहित्य की माघुरी
का तनिक परिचय प्राप्त किया जा सकता है। रसोई बनाते समय सुन्दरी
फूँक मारकर आग जलाना चाइती है, परन्तु आग जलती नहीं । इसका
कितना रसमय हेतु इस गाथा में खोजा गया है--
रन्धणकम्मणिडणिए मा जूरसु रत्तपाडल सुखन्धम्
मुहमारुअं पिअन्तो धूमाह सिही न पज्जलइ ॥।
विरहिणी की भावना का कितना सुन्दर चित्र अ्रद्धित किया है इस भाव
मयी गाथा ने-
अज्जं॑ गओत्ति अज्जं गओत्ति अज्जं गओत्ति गणशरीए
पढ़म व्विअ दिअहड्धे कुट्डो रेहाहिं चित्तलिओ || (২1! ন)
बह आज गया है, आज गया है, आज गया है, इस प्रकार पति के जाने के
दिनों को गिनने वाली विरहिणी ने दिन के पहले अध भाग में ही दीवाल
( कुब्थ ) को रेखा खींच कर चित्रित बना डाला है।
ललित-कलेवरा ललना के सर्बाङ्धों की सुषमा श्राजतक् किसी ने देखी
ही नहीं । क्यों ! आँखें जहाँ गिरती हैं, वहीं चिपककर रह जाती हैं, आगे
बढ़े, तब तो दूसरे भागों का सौन्दर्य देखें ! इस भाव की अभिव्यज्ञिका गाथा
कितनी साफ़-सुथरी, सीधी-सादी है--
পো
বি
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