जैनतत्त्वादर्श | Jain Tattvadarsh

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Jain Tattvadarsh by श्री आत्माराम जी - Sri Aatmaram Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(ड) श्री आत्मान्द जैन महासमा की कार्यारणी समिति ने प्रस्तुत श्रन्थ का नवीत सेस्करण प्रकाशित करने का निणय किया, और उसे कम से कम मूल्य में वितीणे करने का भी निचय शिया । तदनुसार शस के सम्पादन का काय हम दोनों को सीप दिया गया | हमने मी सम्य की स्व- हपता, काये की अधिकता और अपनी स्त्रढ्प योग्यता का कु भी विचार न करके केवल गुरुमाक्ते के वशीभूत दो कर महासभा के आदेशानुसार पूर्वोक्त काये को अपने हाथ में लेने का साहस कर लिया । और उसी के भरोसे पर इस में प्रडत्त हो गये । हमारी कठिनाइयां-- इस काये में प्रददस होने के बाद हम को जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, उन का ध्यान इस से पूर्व हमें बिल्कुल नहीं था । एक तो हमारा प्रस्तुत भ्रेथ का सायन्त झवलोकन न होने से उसे नवीन ढंग से सम्पादन करने के लिये जिस साधन सामग्री का संश्रह करना हमारे लिये आवश्यक था, बह न दो सका | दूसरे, समय बहुत कम होने से प्रस्तुत पुस्तक में प्रमाणरूप से उद्धत किये गये प्राकृत झोर खंस्क्त वाकयों के मूलस्थल का पता लगाने में पूण सफलता नहीं हुईं । तीखरे, दघर पुस्तक का सशोधन करना ओर उधर उसे प्रेस में देना | इस बढ़ी हुई काये-व्यग्रता के कारण प्रस्तुत पुस्तक मे आये हष कठिन स्थलों पर नोट में टिप्पणी या परिशिष्ट मं स्वतन्त्र ष्विचन लिखने से हम वंचित रह गये है । एव समय के प्रधिक




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