सत्ता स्वरुप | Satta Swaroop

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(ই) निकृष्ट कॉल में ज्ञिन धर्म का यथार्थ श्रद्धानादि होना तो कठिन है ही, परन्तु तत्व निणय रूप धर है सो बाल, बुद्ध, रोगी, निरो- गी, धनी निधन, केन्री, कुलेत्री इत्यादि सब अवस्था में होने योग्य है। इस लिय जो पुरुष अपने हित के बांछुछ हैं तिनको सब से प्रथम यह ही तत्व निणय रूप कार्य करना योग्य है। सो ही। कहा है :-- न कु शो न धनव्ययों न गमन देशान्तरे प्राथना । केषांनिन्न यछत्तयों न तु भय॑ पोड़ा न कस्माच्च न ॥ सावध न न रोगअन्म्पतन नवान्यसेवा नहि। चिदुरूपं स्मरो फलं बहुतरं क्िश्नाद्वियन्त बुधः ॥ बहरिजे तत्व निणय के सन्प्ुख न भये हैं उनको उलाहना ढिया हैं । साहीने गुरुजोगे जेण सुणंतहि धम्म चयाः । ते धट दुटचिला अह सुहड़ा भष भय विहीना ॥ तहां जे शास्प्राभ्यास के द्वारा तत्व निएंय तो न करे हैं। अर विषय कषाय के कार्य तिन वि्े ही मगन हैं ते तो भशुभोप- योगी मिथ्या इष्टि हे भ्रर ज़ सम्पकत्व के बिना पृजञ्ञा, दान. तप. शील, संयमादि व्यवहार धमर मं मगन हैं ते शुभोपयोगाी मिथ्या दृष्टि हैं। ताते तुम्र भाग्य उदयते मनुष्य पर्याय पाट है तो सवं धम्म को মুভ कारण सम्यकत्य भर ताका मूल कारण तत्व नि० य. ताका पूल कारण शाह्याधभ्यास सो करना अवश्य हीयोग्य है। भर जे ऐसे अबसर को व्यथ खोते हैं उनपर करुणा बुद्धिमान करे हैं। सो




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