पिव पिव लागी प्यास | Piv Piv Laagi Pyaas

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Piv Piv Laagi Pyaas by चैतन्य कीर्ति - Chaitanya Kirti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० पिकं पिष खायो प्यास हैं। इसलिए जिस वर्ष जितनी ज्यादा गर्मी पड़ती हैं, उस वर्ष उतने ही बादलों का आममन हो जाता हूँ । जीवन में एक गहरी व्यवस्था हूँ। यहाँ कुछ भी अनियमपूर्ण नहीं है। ¦ कुं भी अराजक नहीं है। जब हृदय उत्तप्त होता हं शिष्य का, जलता हैं, | रोता हं, पीडित होता हं जीवनं के दुखं से -अचानके, कोई बंदली चली आती है खिची हुई। वह बदली ही गुरु हं! ओर मिलनं आकस्मिकं हं। गुरु कौ तरफ से नही, शिष्य की तरफ से आकस्मिक है। “दादू गै माहि गुरुदेव मिल्या “-ओैर गेब का दूसरा अथं राह भी होता हे ॥ एक अथं होता ह, अनायास आकस्मिक; ओर दूसरा अथं होता हं, मागं, राह्‌ । यह भी समझ लेने जैसा है, कि जब तक तुम राह पर नहीं हो, गुरु नहीं मिलंगा। थोड़ा सा तो तुम्हे राह पर होना ही पड़ेगा। राह का मतलब हैं कि तुम्हें थोड़ी सी तो खोज करनी ही पड़ेगी ; यह भी जानते हुए, कि तुम्हारी खोज से कुछ होने बाला नहीं है, तुम पहुँचोंगे नहीं। तुम्हारी सब खोज अंधरे में टटोलने जैसी है। लेकिन तुम टटोलते रहोगे तो ही गुरु मिलेगा। जिन्होंने टटोला ही नहीं हे, उनको गुरु नहीं मिल सकता! तुम्हारी थोड़ी सी खोज तो चाहिए। वही तो तुम्हारी प्यास को प्रकट करेगी। तुम्हारा थोड़ा प्रयत्न तो चाहिए। माना कि तुम नीद में हो, चल नहीं सकते, करवट तो बदल ही सकते हो। माना कि तुम नींद में हो, तुम ठीक-ठीक गुरु को पुकार नहीं सकते, लेकिन सपने में भी तो आदमी बुदबुदाता हैँ, अनगेल बोलता है। उस अनर्गल बोलने के पीछ भी आकांक्षा तो होंगी ही बुलाने की । गहरी से गहरी नींद भें भी अगर तुम गरु को खोज रहे हो, यह जानते हुए भलीभांति, कि तुम गुरु को खोज नहीं सकते क्‍योंकि तुम्हारे पास कोई कसौटी नहीं है, जिस पर तुम कस लोगे कि कौन सोना है, कौन सोना नहीं है। लेकिन तुम खोज रहे हो, आकांक्षा है, अभीष्सा हैं; तुम्हारी अभीष्सा के आधार पर ही गुरु का आगमन हो सकता हं। इसलिए राह पर तुम्हारा होना जरूरी हं । ससार में करोड़ो लोग है, सभी को गुरु नहीं सिलता। उनकी आकांक्षा ही नहींदहं। वे तो हरानं होते हं। अमर तुम्हे गुरुं मिल जाय, तौ वे हंरान होते हं, कि तुम किस पागलपन मं पड़े हो। भखे-चगे आदमी थे, सब टीक-टीक चल रहा था, यह क्या गड़बड़ में उलझ गये हो। व॑ तुम्हे बचाने की भी कोशिश करते हूँ। क्योंकि गुरु के मिलने का अर्थ हूँ, तुम उनकी भीड़ के हिस्से न रहै। गुरु के मिलने का अर्थ है, कि अब तुम उस राज-मार्ग पर न चलोगे, जहाँ




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