सागरधर्मामृत सटीक | Sagar Dharmamrit sateek

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सागारधर्भामृतके गूलकर्ता पंडितप्रवर आशाधर अवते कोई ३२ व पहले जैनह्ितिपीमें मैने इस महान्‌ विद्वानका विस्तृत परिचय दिया था जो पीढेसे मेरे / विदृद्माटा” नामक लेख-संग्रहमं पुप्तकाकार प्रकाशित किया गया । कापड़ियाजीके अनुरोध करने पर पहले तो सोचा कि उक्त ऐेखकों ही संशोधित परिव्धित करके सागारधर्मामृतकी भाषा-दीकामे दे दिया जाय, परन्तु जब संशोधित करने बैठा, तंत्र उसमें बहुतसे दोष नजर आये और ऐसी बहुत-सी नई बातें माछम हुई जो टीक स्थानोंपर नहीं शामिल को जासकती थीं। इसलिये জব णी निश्चय काना प कि उसे फिसे लिखा जाय ओर उसके फलस्वरूप यह निबन्ध परमि समने उपस्थित श्रिया जाता है। छ अनथ करता पण्डित आयाध एकं बहुत बड़े विद्वान हो गये हैं। मेरे ख़यालमें दिगन्वर सदय उने ब्द उ जैस बहत. प्रतिमाणाली, प्रौह अन्थकर्ता और जैनपर्मका उध्ोतक दूसरा नहीं हुआ | न्याय, व्याकरण, काव्य, अलंकार, शब्दकोश, धरमशाल, योगशासत्र, वैदक आदि विविध विषयोफ उनका असाधारण अधिकार था | इन सभी विपयोप उनकी अस्खहित ठेलनी चरी है ओट अनेक विद्ाननि चिकार तक उनके निकट अध्ययन किया है। उनकी परतिमा चौर पण्डिय केवर जैन शालं तक ही सीमित नहीं था, इत शाल्ोंमें भी उनकी अवाध गति थी । इसीलिए उनकी एवनार्थोमं यथास्थान समी ताके परुर्‌ उद्धरण दिखाई दं । और इसी कारण अशंगहृदय, काव्यालंकार, अमरकोश जैसे ग्रन्थोपर टीका छिखनेके लिए वे प्रवृत हुए | यदि वे केवर जैनधर्मके ही विद्वान होते तो माव्यनरेश अनवमा, जगुर वार- सहवती महाकवि मदन उनके निकट काव्यशास्रका अध्ययन न करते ओर विश्ध्यवर्मकि सन्धिविग्रह- मनी कवी विष्टण उनकी सुक्क प्रतीपा न कते ! इतना बडा सम्मान केवर सांप्रदायिक व्क नहीं पि काता । वे केवक अपने अवुयागियोमें ही चमकते हैं, दूसरों तक उनके शानका प्रकाश नहीं फुँच पाता । उनका जैनपका अध्ययन भी बहुत विशाल था । उनके अन्थोसे पता चर्ता है कि अपने, एयक तमाम ভাল উন আহি उन्होंने अवगाहन किया था | विविध आचार्यों कौर विद्वा- ने मत-मेदोका सामंजत्य स्थापित करनेके लिए उन्होंने जो प्रयत्न किया है वह अपूर्व है। वे भाव संदधीत न तु विध्येत क मानवे य, इर उन्होने अपना कोई सतत्र मत तो षी मतिपादित नहीं किया है; परन्तु तमाम मतमेदोंकों उपस्थित करके उनकी विशद्‌ चर्चा की है और क उनके बीच रित तद एकता स्थापित दो सक्ती है, सो वतलया है |




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