प्रबन्ध प्रभाकर | Prabandh Prabhakar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
366
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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काव्य का क्या लक्षण है और उसका मानव-जीवन से क्या सबन्ध है ! ई
के लिए प्रकृति भी मानवीय रूप धारण कर लेती है । यद्यपि वेज्ञा-
निक भी प्रकृति को भनुष्य जाति की अनुचरी बना कर उसका
उपयोग मानवीय हित के लिए करता है, तथापि उसकी दृष्टि मं
प्रकृति का प्राधान्य है] वह सलुष्य को भी प्राकृतिक नियमों के
बन्धन मे रखता है और उसको प्राकृतिक दृष्टिकोण से देखता दै
कवि इसके विपरीत प्रकृति को भी मानवीय दृष्टिकोण स देखना
है| इसलिए काव्य का विशेष रूप से मानव-जीवन से संबन्ध है ।
यह तो रही साधारण सिद्धान्त ओर दृष्टिकोश की वात ।
काव्य का मनुष्य जीवन से कई अन्य प्रकारों से भी सम्बन्ध है।
सब से पहले तो काव्य आनन्द देता है ओर आनन्द मलुप्य का
मुख्य ध्येय है । काव्य के आनन्द को त्रह्मानन्द-सहोदर अर्थात्
ब्रह्मानन्द् का भाई वतलाया गया है । मनुष्य जब अपने जीवन में
चारों ओर संघर्षेण पाता है तब काव्य ही उसके जीवन में साम्य
उपस्थित कर उसके जीवन-भार को हलका करता है । काव्य के
द्वारा मनुष्य जाति की सहानुभूति बढ़ती है। मनुष्य अपने संकुचित
घेरे से बाहर आ जाता है। वह भावों की समता के कारण सारी
मानव-जाति को एक परिवार के रूप में देखने लगता है । से
साहित्यिक के लिए कोई जाति-भेद नहीं रहता । जो भाव वह कालि-
दास में देखता है. वही वह शेक्सपीयर में पाता है। वह टैपेस्ट की
एकान्त-वासिनी नायिका सिररेडा मेँ तपोवन-बिहारिणी शङ्कुन्तला
का रूप देखता है | यदि जातियों के भेद-भाव दूर होने की
संभावना है तो साहित्य का उसमें बहुत वड़ा भाग होगा । कवि-
सम्राद् रवीन्द्रनाथ ठाकुर की विश्वमारती इसी लक्ष्य को सामने
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