प्रबन्ध प्रभाकर | Prabandh Prabhakar

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Prabandh Prabhakar  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के काव्य का क्या लक्षण है और उसका मानव-जीवन से क्या सबन्ध है ! ई के लिए प्रकृति भी मानवीय रूप धारण कर लेती है । यद्यपि वेज्ञा- निक भी प्रकृति को भनुष्य जाति की अनुचरी बना कर उसका उपयोग मानवीय हित के लिए करता है, तथापि उसकी दृष्टि मं प्रकृति का प्राधान्य है] वह सलुष्य को भी प्राकृतिक नियमों के बन्धन मे रखता है और उसको प्राकृतिक दृष्टिकोण से देखता दै कवि इसके विपरीत प्रकृति को भी मानवीय दृष्टिकोण स देखना है| इसलिए काव्य का विशेष रूप से मानव-जीवन से संबन्ध है । यह तो रही साधारण सिद्धान्त ओर दृष्टिकोश की वात । काव्य का मनुष्य जीवन से कई अन्य प्रकारों से भी सम्बन्ध है। सब से पहले तो काव्य आनन्द देता है ओर आनन्द मलुप्य का मुख्य ध्येय है । काव्य के आनन्द को त्रह्मानन्द-सहोदर अर्थात्‌ ब्रह्मानन्द्‌ का भाई वतलाया गया है । मनुष्य जब अपने जीवन में चारों ओर संघर्षेण पाता है तब काव्य ही उसके जीवन में साम्य उपस्थित कर उसके जीवन-भार को हलका करता है । काव्य के द्वारा मनुष्य जाति की सहानुभूति बढ़ती है। मनुष्य अपने संकुचित घेरे से बाहर आ जाता है। वह भावों की समता के कारण सारी मानव-जाति को एक परिवार के रूप में देखने लगता है । से साहित्यिक के लिए कोई जाति-भेद नहीं रहता । जो भाव वह कालि- दास में देखता है. वही वह शेक्सपीयर में पाता है। वह टैपेस्ट की एकान्त-वासिनी नायिका सिररेडा मेँ तपोवन-बिहारिणी शङ्कुन्तला का रूप देखता है | यदि जातियों के भेद-भाव दूर होने की संभावना है तो साहित्य का उसमें बहुत वड़ा भाग होगा । कवि- सम्राद्‌ रवीन्द्रनाथ ठाकुर की विश्वमारती इसी लक्ष्य को सामने




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