उर्दू काव्य की एक नई धारा | Urdu Kavya Ki Ek Nayi Dhara
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रवेश
वर्तमान उदू काव्य पर हिद का भ्रमाव कैसे पडा, क्यों पडा श्र कब
से पढ़ना आरंभ हुआ और इस का इतिहास क्या है ? मुझे इन बातों से
कुछ मतलब नहीं । मैं तो केवल यह कहना चाहता ह कि.उदूं कविता
की वर्तमान धारा पर हिंदी का प्रभाव पडा है, और खूब पड़ा है। 'ज़माना'
कानपुर के किसी श्र में स्वर्गीय मुंशो प्रेमचंद जी ने भारत की सामी भाषा
के संबंध में एक लेख लिखा था, जिस में दूसरी बातों के अतिरिक्त उन्हों
ने यह भी कहा था, कि उ्दूचाले हिंदो शब्दों के साथ छुआहूत का অনা
करते ह । इस का उत्तर देते हुए उद् के प्रख्यात गल््प-लेखक मौ० ल०
अहमद ने पंजाब के प्रसिद्ध मासिक पत्र नेरंगे-ख़याल' के एक श्रंक में लिखा
था--“हालाँकि मैं समभता हूं कि उद्वाले हिंदी की ओर स्वभावतया
अधिक सुकाव रखते हैं। उदं के साहित्िक सदेव हिंदी शब्दों के प्रयोग
की कोशिश में व्यस्त दिखाई देते हैं, और उ्ूं कवि अपनी कविताओं मे न
केवल हिंदी शब्द ही अधिक रखते हैं, बल्कि हिंदी भावों ओर हिंदी विचारों
को भी अपनाने से परहेज़ नहीं करते ।” और यह है भी सत्य । जो भी कोई
उदू काव्य का तनिक बारीकी से अध्ययन करेगा, उसे मौ० ल० अहमद के
कथन की सत्यता का पता चल जायगा, उसे आधुनिक उदूँ कविता में हिंदी
का प्रभाव सा दिखाई देगा ।
पंजाब के प्रसिद्ध ज्यंग्य-लेखक हजरत (पाग्रल ने ( जिन का पागलपन
'इसी से जाहिर है कि वे अपने को पागल न लिख कर व्याकरण की बेचियों
का मजाक डड़ाते हुए 'पाग़ल' ल़िखां करते हैं) एक जगह लिखा है ;--
जेब में पैसा नहीं और रोटियों से तंग है ,
लोग कहते हैँ कि पागल गॉधी ठोपीपोश है।
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