नवीन मनोविज्ञान और शिक्षा | Naveen Manovigyan Aur Shiksha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वारक क समाव ५ बाल-जीवन की विभिन्न अवस्थाएँ मनोविन्छेषक वैज्ञानिकों ने सम्पूर्ण बात्यजीवन को तीन भागो में विभक्त किया है-- (१) शैशव# काल, जन्म से पाँच वर्ष तक। (२ ) वालपन,' पाँच वर्ष से ग्यारह वर्ष तक। (ই) किशोरावस्था,1 ग्यारह वर्ष से युवाचस्था तक। इनमे से प्रत्येक अवस्था म॑ वाछक का संवेगात्मक जीवन * मिन्न-मिन्न होता हे ओर उसको प्रवृत्तियों ओर इच्छाएँ भी भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है। ज्ञो इच्छाएँ ओर संवेग वालक के शैद्यवावस्था में प्रबल होते हैं वे ही इच्छाएँ ओर संवेग उनके चाल्यकाल में प्रवकछ नही होते। इसी तरह चाब्यकाल की इच्छा ओर संवेग शोरावावस्था की इच्छाओं ओर संवेग से भिन्न होते है । अतप्व वाक फे मानसिक विकास की अवस्था जाने बिना उसके किसी भी चेष्टा को अच्छा या बुरा नही कहा जा सकता है। जो व्यवहार शेशवावस्था में अनुचित नहीं समझा जाता वही वाल्यकाल में अनुचित समझा जाता है। शेशव में बच्चे का अपने माता-पिता के प्रति विशेष प्रकार का प्रेम और आकर्षण रहना स्वाभाविक है, किन्तु यहीं प्रेम ओर आकर्षण वालपन में वालक के मानसिक विकास के अवरोध का प्रद्शक ২ হীরা ই | ত্য मे वालक में स्वतन्नता की इच्छा तथा की प्रवृत्ति मानसिक विकास में सहायक होती है, किन्तु इस प्रचात्ति का शेशव या वालूपन भें उदय होना वाहक के मानसिक विकास के लिए हानिप्रद होता *. ৯ 101005, त [भल लत्रत1000, ३ 30ण९४८९८1८६, ১৫ প001002] 186




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