अघमर्षण द्विजराज | Aghmrshan Dwijraj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ष রঙ (११) दयेपरामनीचामेद्राणांस्तोमोयेन्येाःसन्तोत्ा- त्यांप्रवसेयस्तएतेन यजेरन्‌ ॥ इस्का अथे यह हं कि লাল সন্ত कामी सरकार व्रा- तस्तोम यज्ञसे होसक्ताहै। जब संस्कार करने को कोई पण्डित से भायश्रित्त करने को पूछे तो पण्डित उप्तकों उसके छायक ओर समय के अनुझूल प्रायश्वित्त वतकावे नसे कि असमर्थस्य बालस्य पिता वा-यदिवा गुरुः यम॒दिश्य चरेद्धम पापं तस्य न विद्यते ॥ २२ ॥ अशीतियेस्य वर्षोणि वालोवाप्यनपोडरशः ॥ आ- यथित्तादमहेन्तिखियोरोगिणएवच ॥ ইহ इति आङ्धिरसस्खतिः।तथाच-श्ुधाव्याधितका- यानां प्राणों येपां নিব ॥ येन रक्षन्ति वक्छारस्तेषांतक्किल्विपंभवेत्‌॥ह.पूर्णेऽषेकालनि- यमेनशद्धिब्रोह्मणेविना। अपर्णेष्वापिकांलेपशोध- यंतिद्धिजोत्तमाः † १०} समाप्मितिनोवाच्यं त्रिपुवणेंपुकहिंचित्‌॥ विप्रसंपादनं कर्मडतनचचेषरा- णसंशये ॥ ११ ॥ संपादयतियेविप्राः स्नानंती- थफलप्रद॑ ॥ सम्यक्षतुरपापंस्थाइृतीचफलमाप्तु यात्‌ ॥ १२ ॥ इत्यापस्तंवस्मृतिः अध्यायः३ ॥ इनका अथ यह दे कि-जिस असमथ बालक के बदले षिवा वागु जो भायवि् करे उस लड़के का पाप नह हाजाता हैं अयीद ছিনা वा गुरु द्वारा उस लड़के का प्राय-




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