राष्ट्रभाषा पर विचार | Rashtrabhasha Par Vichara

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Rashtrabhasha Par Vichara by चन्द्रबली पांडे - Chandrabali Panday

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रष्ट्रभाप। ११ देहल्वी को नहीं । बात यह है कि শুরু की प्राचीनता सिद्ध करने के लिये दक्खिनी का जितना नोभ जिया जाता है उतना उस पर विचार नहीं कि4। जाता । नहीं, यदि दवरिसनी का स्वत अष्ययन हो तो भाषा के रे मे ऊ आर ही रहस्य सुख । पुक्खिनी के विषय में भूलना नहाभा कि श्रीसाकडेय कर्षीद्र (१०वीं ९८ ई० ) उसके संबंध में ( प्राृतसय॑स्व में ) छिख। है द्राचिडीभप्यमच भन्धते | तथोक्तम्‌ टफकपेशीयभाषाया ২৬৭ 9ণিভী तथा ] तय चाय विरेषोऽस्ति द्राचिडरादताषरम्‌ ॥इति।} (घोडश। पार) इधर भाषाशासियो ने दक्खिनी का जो लेखा लिया है वह साफ डय के उक्त कथन के सबथा अचुक्रूल है। লিও হও दृफ्खिनी कषियों ने कभी टक्क वा ८ाकी का नास नहीं लिया है। तो कथा साकडेथ का कथन খা निराधार है? निवेदन है नहीं, दक्खिनी के प्राय: सभी पुरे लेखकों ने अपत्ती भाषा को गूजरी कहा है जिसका अथ ভু में गुजराती समाया या है | ५९ जैसा कि कहा ज। चुका है, उनको भाषा शुगराती से मेछ नहीं जाती, हों, पंज।नी से अवश्य मिलती है। तो कथा उनकी {जरती पंजान के १।ज९।त से संवदे गो हो, हम तो इस भूजरी को प्रत्यक्ष शुअरी का रूप सममंपे है | ४|०रो के विषय में जो कहा गया है. अपअंशेन छुष्थन्ति सेपेन नान्‍्येन ২1২12 उसका भी कुछ अथं है। उसे अब यो ही नहीं ८।ल। जा सकता । 'मूजरी? तो हिंदी की नायिका ही बच गई हे, फिर राष्ट्रभाष। के प्र४। में उस केसे छोड़ सकते है अच्छा, तो पेलना यह है कि इस भूजरी का सस्छत से नथा संबंध है, क्योकि इस प९ डटकर वि-11र२ किए बिना राष्ट्रभाषा क। भरेन खुल नहीं सकता आर अतिषादी समान नहीं सकते कि भारत को ९।्रभाषा संस्कृततनिष्ठ क्यों है। छीजिए चद्दी माकडेय स्पष्ट घोषणा करते हैं संस्कृताब्यां व भोजरी? ओर च्चः की व्याख्या फरते हैं. “चका- <प्‌ पूता १।५६२१्‌ |” ( वदी, अश्टाक्‌दा पाद )




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