श्री चतुर्विंशतिजिन स्तुति | Shri Chaturvinshatijin Stuti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
48
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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पायो यस्य सः । किनुर्वन् सिद्धा प्रसिद्धा बुद्धिं यच्छन् । किमूतं कोधमलध्वंसने-
तोयं नीर ! किभूत सजाश्च ते नानामाश्च रोगाः ते सल्जनानामास्तेभ्यः पा
रक्ता राति ददातीति शच॑ सज्जननामपार ॥३॥
वज्रशखला मोदं दयात् 1 तारा उज्वल्ला हारेण सारो.ऽधिकारो यस्याः
सा हारसाराधिकारा । किभूता पशे वास सदधाना । किमृते सदानदे सप् प्रधान
श्रानन्ो यत्र तस्मिन ! वीतारा गतवैरिनजा श्राहास्थ सा च श्राहारसे। ते
च राति ददाति या । अधिका उक्कृष्टा श्रारा दीप्ति यस्या सा॥४॥
श्री अभिनन्दननिन स्तुतिः ।
( दरतबिलचितदन्दः )
तमभमिनन्दनमानमतामं, विश्शदसंवरजं तदितापदम् ।
य दह धम्मिधि वियुरभ्यधा-द्विशदसंवर-जंतु-दितापदम् । १।
जिवरान्नवराग निवारकानू, नमततानवभावलयानरम् |
शितरिषे रचयति हि ये द्रत, नमतता नवभवल्या-नरय् ।२।
सममयः समयो विलसन्नयों, मवतुदे वनरोचित सत्पद)
तव जिनेश कुचादि मदापहो, पवरतु देवनरोचित्तसत्पद३ ॥३॥
सशरचापकरा किल रोहिणी, जयति जातमहा भयहारिणी |
गपि गता सततं विगलन्मनो-ज यति जात महामय हारिणी २
व्याख्या--तं आअभिनन्दन मानम । লিহাহ্ঞ্সাজী सवरो नृपस्तस्माजात ।
तुदिता व्यथिता श्रापदो येन त । विशत् असचराणा जन्तूना दितानि खडि.
तानि श्रपदानि उत्सूत्राणि येन त्त ॥ १॥
तान्. जिनवरान् नमत । किभूतान. ्रवभावलयान् अवभावे रक्लाभावे
लयो येषा ते तान् 1 छर शश ये जिना नरं श्रिनशिव र्ययन्ति। किंभूता
नमतता नमता न वल्लभा ता श्री यंपा ते सारंभत्वात । नवभावलया नव মাল-
लय भामंडल येषा ते ॥ ६ ॥
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