मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रंथ | Munidwaya Abhinandan Granth

Munidwaya Abhinandan Granth by चांदमल चौपड़ा - Chandmal Chopra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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00 8888 संयोजकोय राजस्थान की स्थानकवासी जैन-परम्परा में आचाये श्री सुवनाथजी एवं आचार्यं श्री जयमलजी दो महान्‌ ज्योतिधेर आचायं हए हँ । दोनों ही वड़े प्रभावशाली, तपस्वी एवं जन श्रुत वाड मय के गहन अभ्यासी थे। राजस्थान के अधिकांश क्षेत्रों मे आज इन्हीं दो आचार्यो की परम्परा काश्रमण परिवार फैला हुआ है! आचार्य श्री जयमलजी महाराज की परम्परा में स्वर्गीय स्वामी श्री जोरावरमलजी महाराज, स्वर्गीय स्वामी श्री हजारी- मलजी महाराज महात्‌ प्रभावशाली, तेजस्वी एवं वर्चस्वी संत हुए हैं। आज उनके प्रतिनिधि है--स्वामीजी श्री त्रजलालजी एवं मनि श्री मिश्रीमलजी (मधुकर !' श्री मधुकर मुनिजी जितने विद्वान, विचारक है, उतने ही गहरे शांतिप्रिय, आत्मनिष्ठ एवं निस्पृहवृत्ति के संत हँ । यश एवं कीति की लिप्सा तो उन्हें छू भी नहीं गयी है, वल्कि कहना चाहिए थे मान-सम्मान पूजा-प्रतिष्ठा आदि लोकपैणाओं से सदा कतराते-से रहे हैं । उनके ज्येष्ठ ग्ुरुञ्राता स्वामी श्री त्रजलालजी तो और भी उदासीन-निस्पृहवृत्ति वाले श्रमण हैं। ऐसे संतों का अभिनन्दन-समारोह्‌' एक वड़ा विचित्र प्रषन है, ओर विचित्र से भी अधिक कठिन ! मुनिद्दय के अनेक श्रद्धालुजनों तथा मुञ्च जैसे भावनाशील व्यक्तियों के अन्तरम मे एकं कल्पना थौ कि मुनिद्दय द्वारा की गई जिनशासन की सेवाओं तथा सुदीर्धे निर्मल-चारित्र पर्याय के उपलक्ष्य मेँ हम उनका सार्वजनिक अभिनन्दन करे, एक अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट कर अपनी गहन-रुफूते श्रद्धा को कुछ अभिव्यक्ति दें \ विविह्‌ कुलुप्पण्णा स्राहवे' कप्यरूक्खा | सा ने লু प्रती ॐ जगम कल्पदृक्ष स জিতু ক টি তেনে न्त कनद सकन्दः दथ ~ ~ সত উর খেতি খ म) ~~~ ---------- ~~~ ~~~ ---~-----~- ~~ ~+ - ०.0...




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