धनआनन्द कवित्त | Dhananand Kavitt

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Dhananand Kavitt by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ 2) रचना मे बराबर करते रदे । अंत में कहा जाता है कि मथुरा पर होनेवाले नादिरिशाह के हमले म॒ ये मारे यए নি এ इतिहास म मथुरा पर नादिरशाह के हमले की चर्चा नहीं है। अहमदशाह दाली या दुरानी के हमले की ही वात आई है । सबसे पहले नागरीदासजी के जीवनचरित्र में बाबू राधाकृष्णदासजी ने यह संकेत किया कि हमला दुरोनी का था। मेरे शिष्य स्वर्गॉय विद्याधर पाठक ने बड़े परिश्रम से इस आंति का निराकरण करने की ओर विद्वानों का ध्यान आक्ृष्ट किया। उसके अनंतर श्रीज्ञानवती त्रिवेदी ने 'घनआनंद' नामक पुस्तक भें यह भली भाँति सिद्ध कर दिया कि यह हमला अब्दाली का ही हो सकता है । सं० १८४९ के लिखे कृष्णमक्ति-विषयक एक पदसंग्रह में इस हमले का उल्लेख इस ग्रकार है--'श्रीकामवन के मंदिर मटेछनि करि जो उतपात भयौ ताको हेत जो रसिकनि के विचार में आयो सो लिख्यों हैं? उत्पात का कारण पूजा मे त्रुटि चतलाया गया है। रघुराजसिंहजू देव को 'रामरसिकावली? में दो हुई घनआनंद की कथा से यह वार्ता? कुछ मिलती है। श्रौन्‍ृन्दावनदासजी ने' इसका संकेत अपनी श्रीकृष्ण-विवाह-उत्कंठा-बेलौ” में इस अकार किया है-- “जमन कल संका दई घजजन भए उदास । ता অমর অভি অনা বর কিস জনয আজ 0|৮-_ ( खोज १९१७--३४ एफ ) 1. ' अब इधर जो नवीन सामग्री श्राप्त हुई है उसते इसी की पुष्टि होती जाती है कि घनआनंदजी का निधन मथुरा में हो हुआ ओर ये नादिरशाह के | आक्रमण में न मारे जाकर अहमद्शाह के आक्रमण मे ही मारे गए। अब्दाली ने एक वार सन्‌ १७५० (.सं० १८१३ ) ओर दूसरी बार संन्‌ १७६१. ( सं° १८१७ ) में मथुरा पर आक्रमण किया था। घनआनंदजी का निधन दूसरी बार के आक्रमण मे हुआ था । . - नादिरश्ञाह के।आक्रमण के अनंतर तो ये जीवित थे । यह इन्हीं के कंधन हंतरा सिद्ध है। इधर आनंदघनजी के प्रंयाँ को जो बुहत्‌ संग्रह प्राप्त हुए है उनमे' एक. शुरलिका-मोदः भी हैं । इसके अंत मे ये छवयं ভিত্ব ই --




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