विचार व्लारी | Vichar Vlari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कुटुम्च गिरकर टूट जाता है। फिर धम्घे-रोजगार की मिसाल ली जाय तो हम देखेंगे कि ऐसा आदमी एक भी नहीं दिखाई देता जो यह कह सके कि सत्य का पालन नहीं करना चाहिए | न्याय और भलाई का असर कुछ बाहर से नहीं हो सकता, वह तो हममें ही रहता है। चार सी साल पहले यूरोप में अन्याय ओर असत्य अति ग्रवल थे। वह समय ऐसा था कि लोग घड़ी- भर शान्ति से न रह सकते थे) इसका कारण यदह था कि लोगों में नीति न थी। हम नीति के समस्त नियसों का दोहन करें तो देखेंगे कि मानव-जाति का भत्ता करने का प्रयास ही ऊँची नीति दै। इस छुञ्ी से नीति-रूपी सन्दूक को खोलकर देखा जाय तो. नीति के दूसरे नियम हमें मिल जायंगे । क्या हम यह कह सकते हैं कि अमुक काम नीतियुक्तं दै ? यद सबाल करने में नीति वाले और चिना नीति के कामो की तुलना करने का हेतु नहीं है, वल्कि जिन कामों के खिलाफ लोग कुछ कहते नहीं, और कितने ही जिन्हें नीतियुक्त मानते हैं, उनके विषय सें विचार करना है। हमारे बहुतेरे कामों में खास तोर से नीति का समावेश नर्द होता) अधिकतर हम लोग साधारण रीति-रिवाज के अनुसार आचरण करते हँ। इस तरद रूढि के अनुसार चलना चहुत समय आवश्यक होता है वैसे नियमों का अनुसरण हम न करें तो अन्धाघुन्धी चलने लगें और दुनिया का कार-बार बन्द हो जाय, पर यों रुढ़ि के पीछे चलने को नीति का नाम देना मुनासिव नहीं कहा जा सकता । नीतियुक्त काम तो वह कहा जाना चाहिए जो हमारा अपना द, यानी जो हमारी इच्छा से किया गया हो । जव तक दम मशीन के पुरे की तरद काम करते हों तब तक हमारे काम में नीति का प्रवेश नहीं होता । मशीन के पुरजे की तरह काम करना हमारा फर्ज हो ओर हस करें तो यह विचार नीतियुक्त है, क्योंकि हम १३




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