मुकुल | Mukul

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Mukul by सुभद्रा कुमारी चौहान - Subhadra Kumari Chauhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ मुझुल फट त्णों के लिए खय कवि बन जाते ६ 1 कवि ने मिस यस्तु का यणन किया हैं, उसका भाव दसारे हृदय में उत्पन्न नहीं चेवा, धरिकि वह्‌ कविता स्वयं भावफारूप घन जाती है। शब्दों में इतना जोर रहता हैँ कि ये एमारे व्यक्तित्व का पदल देते हैं। कविता भाव के! नहीं ऊगाती, घर्फि पट स्वयं भाव बन कर सामने झआ खड़ी होती है । यह फविता फा कितना उत्झृष्ट रूप (1 लेकिन यह মান तव तक न्व ती, जत्र तकः कि उन भावों में फवि का न्माद्‌ और अनुभव उसी प्रकार न भूले, शिस प्रकार सजीले पालन में सकमार शिशु ! फविता फे इन्ट्री तीन तलों में मैंने सी मतो सुभद्रा छुमारी फी फविता फा झद्गार पाया £। हूदय की परिश्यित्तियों एा फला-रूप, गाव्दों और भावों में सादझना और জীন ছা पालविक अनुभव, एन तीन धाराएों में सुभठा कात মিনা या प्रयाद ऐता ै। तीन पराराणों फी यही লিলা हृदय में ানল ফণা সাবিমা হালা €। सभद्रा ली फी হহিঘা বনে হেবা ঘরিহিবারিহ फे जितने বিদ্ধ লিটন 4, इस লগা में राभादयिशसा ~ ওত ১৩ सण्ता और सं 8 হে হহতী নী লালা हमें उसी সান মঘজা ধলা সাত রিবা ঝা हटर




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