वक-संहार | Vak-Sanhara
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
455 KB
कुल पष्ठ :
42
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बकन्संहार
ट्विजवये फिर कहने लगा,
करुणाश्रु जल बहने छगा $७-
४डालो न मुझको मोह करके मोह में।
यह कथन है समुचित तुम्हें ,
है दष्ट मेया दहित तुम्हें;
पर लाभ क्या इस व्यथे के विद्रोह में ?
पाणिश्रहण जिसका किया ,
सव भार जिसका है लिया ;
कैसे उसे में सत्यु-मुख में छोड़ दूँ?
২. 1 दोमाप्रि सम्मुख विधिविहित.-,
५ जिसको किया निज सें निहित ,
सस्बन्ध उस सहधम्पिणो से तोड़ दूँ?
ब्रह्मणि, सुनो, रोश्रोनयो,
धीरज धरो, खोच्मो नयो,
निज हित इसमें तुम भले ही मान लो।
जो आप वक की वलि वनो),
लव पुत्र-सा कुल-हित जनो।
प्र धमे मेरा क्या? इसे भो जान छो |
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