वक-संहार | Vak-Sanhara

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Vak-Sanhara by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बकन्संहार ट्विजवये फिर कहने लगा, करुणाश्रु जल बहने छगा $७- ४डालो न मुझको मोह करके मोह में। यह कथन है समुचित तुम्हें , है दष्ट मेया दहित तुम्हें; पर लाभ क्‍या इस व्यथे के विद्रोह में ? पाणिश्रहण जिसका किया , सव भार जिसका है लिया ; कैसे उसे में सत्यु-मुख में छोड़ दूँ? ২. 1 दोमाप्रि सम्मुख विधिविहित.-, ५ जिसको किया निज सें निहित , सस्बन्ध उस सहधम्पिणो से तोड़ दूँ? ब्रह्मणि, सुनो, रोश्रोनयो, धीरज धरो, खोच्मो नयो, निज हित इसमें तुम भले ही मान लो। जो आप वक की वलि वनो), लव पुत्र-सा कुल-हित जनो। प्र धमे मेरा क्‍या? इसे भो जान छो |




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