रामचरितमानस में वैज्ञानिक तत्त्व | Ramcharitmanas Mein Vaigyanik Tattav

Ramcharitmanas Mein Vaigyanik Tattav by डॉ विष्णुदत्त शर्मा - Dr. Vishnudatt Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रहस्यमयी शक्तियों को पुनस्थापित करने में लग गए हैं । वैज्ञानिक प्रयासों द्वार अब रहस्यमयी शक्तियों को प्राप्त करने का विषय प्रयोगशालाओं अनुसंधान-संस्थानों एव विश्वविद्यालयों में प्रवेश कर सूत्रों परिभाषाओं तथा प्रयोग-सिद्ध विधियों का स्वरूप ले रहा है। अब रहस्यमयी शक्तियों का स्वरूप कल्पना भ्रम और श्रव्य कथा न रहकर प्रयोग सिंद्ध-सत्यत्ता का आकार ले चुका है। प्रयास द्वारा प्राप्ति को मान्यता मिल चुकी हैं । अब समय आ गया है कि भारतीय शिक्षाविद्‌ विज्ञानविदु तथा अन्य पाश्वात्य विज्ञान और दर्शन का मोह छोड़कर अपने पूर्वज एवं ऋषि-मुनियों के ज्ञान को समझें तथा पाश्चात्य देशों की चमक-दमक की दासता से स्वतंत्र हो भारतीय संस्कृति को अपनाएं । भारतीय ऋषि-मुनियों ज्ञानियों दार्शनिकों तथा तपस्वियों के संकलित ज्ञान पर आधारित रामचरितमानस न केवल धर्म-भावना का सार है बल्कि भारतीय इतिहास जीवन-दर्शन तथा विज्ञान का ऐसा अनूठा संगम है जहां काव्यमयी यमुना धर्ममयी गंगा तथा लीकर्मंगल की सरस्वती-त्रिवेणी प्रवाहित है। यह भक्त के लिए भक्ति का सरोवर धर्मात्मा के लिए स्मृतिकाश नीतिज्ञों के लिए नीति-ग्र शोधार्थियों के लिए महासागर और जन-जन के मन का मानस है। यह एक महा काव्यग्रंथ के साथ-साथ महान धर्मग्रंथ एवं अपार वैज्ञानिक निधि भी है। इसको पढकर भारतीय जनता एक साथ ही सब कुछ पा जाने के सुख का अनुभव करती है। मानस ने अपनी शक्तिमत्ता सरलता श्रेष्ठता और व्यापकता द्वारा पूर्ण बल से भारत की संस्कृति तथा समाज की आत्मा को जीवित रखने में सच्चे संविधान के रूप में योगदान दिया है महाकवि तुलसीदास जी ने कहा है- जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरति देखि तिन तैसी । अतः व्यक्ति चाहि राजनेता धार्मिक नेता धर्मावलंबी अथवा शोधार्थी कोई भी क्यों न हो इस महानू काव्यग्रंथ रूपी महासागर से अपनी-अपनी भावना के अनुसार अभिवांछित सामग्री प्राप्त कर तृप्त हो जाता है। सम्पूर्ण साहित्य-संसार मे रामचरित्तुमानस ही एक ऐसा महाकाव्य है जिसके विषय में सर्वाधिक शोधकार्य हुआ है और हो रहा है। मानस भू-गर्भ निधि के समान है जिसका जितना अधिक खनन किया जाएं उतना ही अधिक उपलब्ध होगा । यही कारण है रामचरितूमानस के चिषय में किसी भी अन्य ग्रंथ की अपेक्षा सर्वाधिक समीक्षाएं आलोचनाएं काव्य सौन्दर्य तुलसी की साहित्य-साधना इत्यादि अनेक अध्ययन साहित्यिक दृष्टिकोण से आज तक किए गए। यहां तक कि कुछ आलोचकों ने अपनी-अपनी प्र भावना के अनुरूप हिन्दु समाज के पथभ्रष्टक-तुल्सीदास कहकर अपने आपकी कद में वैज्ञानिक तत्व




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