सर्वोदय योजना | Sarvodaya Yojana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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* © ४ ৪০ ` सर्वोद्य के आदश ओर उद्देश्य ९. इसलिए आदर्श ऋमश एक ऐसे अहिसक समाज का सगठन है जिसमें कि मानव वैयक्तिक तथा सामाजिक पूर्णता प्राप्त कर सके, जिसमे जीवन की भौतिक आवद्यकताओं की पूर्ति की दृष्टि से अधिकतम प्रादेशिक स्वावलम्बिता हो और जो अपने सामाजिक, सदाचारिक तथा सास्कृतिक लक्ष्यो की प्राप्ति सहोद्योग पूर्वक करता हो। अहिंसक समाज की ओर हमारी प्रगति का कदम हिंसा का प्रयोग समाप्त कर देने की हमारी सामथ्यं पर निर्भर करेंगा।' हिंसा प्राय निम्न तीन रूपो में प्रकट होती ह -- (१) दोहन में अर्यात्‌ मनुप्य का मनुप्व हारा उपयोग किया जाने में, (२) अपराध करने और दण्ड देने में, और (३) युद्ध में। इसलिए समाज का जीवन एक परिवार के नमूने पर टालने का यत्न करना चाहिए, जिससे कि अपनी आवश्यकता के लिए एक दूसरे का उपयोग करने की (दोहन की ) भावना समाप्त हो जाय, बुराई का प्रतिकार भलाई से किया जाय, अपराधो को चिकित्सनीय रोग माना जाय ओर युद्धोको লা तय करनं का साधन समभेना छोड दिया जाय « समाज में दोहन की समाप्ति और जीवन में पूर्णता की प्राप्ति के लिए रहन-सहन की सादगी अत्यन्त आवश्यक ह ! इस प्रकार के समाज-निर्माण के लिए यह भी आदवद्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति जीवनोपयोगी साधारण वस्तुए बनाने कै प्रणोजन न णेडा-वहूत शारीरिक श्रम नित्य करे 1 फ्रदेशो को अपनी भौतिक जावब्यकताओ की पूर्ति में अधिकाधिक स्वावलम्बी होना चाहिए। हमारा मत तो यह हूँ कि जो भी वस्तु विकेन्द्रीकृत उत्पादन के २




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