शरत् साहित्य [भाग 24] | Sharat Sahitya [Bhag 24]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
196
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जागरण १७
चिन्तित मुखमुद्रामें साइहबने कद्दा--ये जो कलकत्तेसे आकर गाँव-गाँवमें रात्रि-
पाठ्शालायें खोले बठे हैँ । रेयतों-कमकरोंकी बातें लिखकर मुझसे आदेश मोगा
था--तो इसमें हज ही क्या ? जो मर्जी आए, करें वे छोग मेरा क्या सुनने
तो वस अपनी मालशुजारी-भर चाहिये।
आहेख्यने पूछा--तो, हमारे मौजेमें मी राजिपाठभाला खोली गई है !
८४ अवश्य | ” पिता सगवे वोले, '* अवश्य ! मैंने ख़ुद ही तो उन्हें लिखा था,
कि मन्दिरका नाथ्यमवन खारी पड़ा रहता है, चाहें तो उसीमें काप् चलावें।
किरासीनका ही तो खर्चा छंगेगा न १ ”?
आलेख्यने कहा--सो, मिद्टीका वह तेल भी कचदरीसे ही दिया जाता है १?
५ हुक्म तो दिया है, अब अगर न मिलता हो तो यदि क्या कर | `
वह कुछ देर तक चुप रही, बापकी ओर देखती रही फिर वोखी--वावा, उस
कमरेमें जाकर तुम बैठो । में यह सब ठीक कर लेती हूँ। तुम्हारे साथ में भरी
जाऊँगी |
विस्मित स्व॒रमें रे साहबने कद्दा--तुम चलोगी ?
“८ हूँ ?...आहछेख्यने जवाव दिया--“ लगता है मेरे गये बिना काम नहीं
चलनेका । ”?
र्
यह पहला अवमर था कि आहेख्य पिताके साथ अपने पूर्वजोंके निवासगहमें
आ उपस्थित हुई । उम्र ज्यादा नहीं थी लेकिन अवतक तीन वार वह युरोप हो
आई थी ! दाजजिरखिग ओर सिमला तो श्चायद् ही किप्री साल टता होगा)
चायपार्टी और डिनर--वेशुमार दावतोंमें वह शामिल हो चुकी है। जब माँ
जिन्दा थी, तब ख़ुद अपने यहाँ भी दावतोंके त्रुटिहीन आयोजन दाथ वराया
है आलेख्यने । समाजोचित सभी आवश्यक वातोंका उसे ज्ञान है। गाना-बजाना,
दौड-धूप, खेल, समा-सोसाइटीके त्तौर-तरी के सब उसे माप हैं । कहाँ, कब, कैसी
पोशाक जहरी है; कौन रग और कौन-सा फूल किस मौसमसे मैच खाता है,
इसकी उसे भली-भौति जानकारी थी। अभिरुचि और फेशनके सम्बन्धमें मालम
करनेको उसके लिए शायद ही कुछ वच रहा हो । हो नदी माकम दै तो वस एक
यही वात कि ये चीजें आखिर आती कहाँसे हैं और किस तरह । माँ और बेटी
र्
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