काले कारनामे | Kale Karname
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.68 MB
कुल पष्ठ :
102
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रहा । कभी-कभी मनोहर के सोते रहने पर फ़ल्तियाँ चलती
रही । जव जया तब दुपहर थी । नीद के थ्रा जाने से वदन
हत्का हो गया। जगल गया श्रौर दातोन के लियें नीम कां
एक गोजाह ले कर लौटा । फिर- ढोल, लोटा, डोर, श्रौर
घोती लें कर पक्के कुएँ को चला । नहा धो कर घर लौटा,
मकान के मीतर देवता को प्रणाम करने गया, कुछ देर बँठा
माला जपता रहा, फिर चन्दन लगाए हुए लौटा श्रौर चौके
को गया । उसकी माता ने थाली परोस दी श्रौर बैठी मक्खियाँ
उडाती रही । जब भ्राघा मोजन कर चुका, एक गिलास पानी
थी लिया, तव उसकी माता नें पुछा, “क्यों मैया, श्राज झाते
शी सो गए ? पाठ्याला नहीं गये ।”
मनोहर ने जवाब दिया, “कुछ ऐसा ही पेंच पड गया है।
तुमसे कहूंगा । वडी वात नहीं, एक वतगड है।”
माँ मुह देखती रही । झाप्रह थ्राँख से फुट कर निकल
रहा था । मनोहर ने भोजन समाप्त किया । हाथ-मुह् घोए,
कुल्लें किए। माँ ताक पर थी , इसलिए घर की ख़िडकी से गोछ़े
की तरफ गया, इशारे से माँ को बुला कर ।
उधघर चारो तरफ़ से चारदीवार बीच में तीन-चार नौम
के पेड हैं, छाया किए हुए । दो एक चारपाइयाँ पढ़ी हैं ।
'प्रौरतो के विधाम की जगह है । वाहर से कोई देख नहीं सकता ।
जैसे छोटा नीम का एक. वागरीचा हो । एक तरफ एक
काले कारनामे २ १७
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