काले कारनामे | Kale Karname

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kale Karname by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
रहा । कभी-कभी मनोहर के सोते रहने पर फ़ल्तियाँ चलती रही । जव जया तब दुपहर थी । नीद के थ्रा जाने से वदन हत्का हो गया। जगल गया श्रौर दातोन के लियें नीम कां एक गोजाह ले कर लौटा । फिर- ढोल, लोटा, डोर, श्रौर घोती लें कर पक्के कुएँ को चला । नहा धो कर घर लौटा, मकान के मीतर देवता को प्रणाम करने गया, कुछ देर बँठा माला जपता रहा, फिर चन्दन लगाए हुए लौटा श्रौर चौके को गया । उसकी माता ने थाली परोस दी श्रौर बैठी मक्खियाँ उडाती रही । जब भ्राघा मोजन कर चुका, एक गिलास पानी थी लिया, तव उसकी माता नें पुछा, “क्यों मैया, श्राज झाते शी सो गए ? पाठ्याला नहीं गये ।” मनोहर ने जवाब दिया, “कुछ ऐसा ही पेंच पड गया है। तुमसे कहूंगा । वडी वात नहीं, एक वतगड है।” माँ मुह देखती रही । झाप्रह थ्राँख से फुट कर निकल रहा था । मनोहर ने भोजन समाप्त किया । हाथ-मुह् घोए, कुल्लें किए। माँ ताक पर थी , इसलिए घर की ख़िडकी से गोछ़े की तरफ गया, इशारे से माँ को बुला कर । उधघर चारो तरफ़ से चारदीवार बीच में तीन-चार नौम के पेड हैं, छाया किए हुए । दो एक चारपाइयाँ पढ़ी हैं । 'प्रौरतो के विधाम की जगह है । वाहर से कोई देख नहीं सकता । जैसे छोटा नीम का एक. वागरीचा हो । एक तरफ एक काले कारनामे २ १७




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now